
देहरादून | उत्तराखंड के जंगलों में बाघों की सटीक संख्या जानने के लिए तैयारियां जोरों पर हैं। अक्टूबर में पहले चरण के तहत साइंस सर्वे की शुरुआत होगी, जिसे ‘इकोलॉजिकल मॉनिटरिंग’ भी कहा जाता है। इस प्रक्रिया के तहत वन विभाग के कर्मचारी जंगल में बाघों और अन्य वन्यजीवों की मौजूदगी से जुड़े संकेतों को इकट्ठा करेंगे। यह सर्वे तीन चरणों में किया जाएगा और इसका संचालन भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) के निर्देशन में होगा।
बाघों की गणना का खाका तैयार
हाल ही में डब्ल्यूआईआई देहरादून में एक अहम बैठक हुई, जिसमें कार्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व समेत उत्तरी भारत के कई टाइगर रिजर्वों के निदेशकों ने हिस्सा लिया। बैठक में बाघ आकलन की कार्यप्रणाली पर चर्चा हुई और कैमरा ट्रैप से लेकर स्टाफ ट्रेनिंग तक की रूपरेखा तय की गई। कार्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक डॉ. साकेत बडोला ने बताया कि बाघों की गणना का कार्य तीन चरणों में संपन्न होता है:
तीन चरणों में होता है सर्वेक्षण
- पहला चरण (इकोलॉजिकल मॉनिटरिंग):
वनकर्मी जंगल में बाघों की गतिविधियों, पदचिह्नों, मल-मूत्र आदि के निशान इकट्ठा करते हैं। यह चरण अक्तूबर 2025 से शुरू होगा। - दूसरा चरण (डेटा विश्लेषण):
एकत्र किए गए डेटा को डब्ल्यूआईआई को सौंपा जाता है, जो इसका वैज्ञानिक विश्लेषण करता है। - तीसरा चरण (कैमरा ट्रैपिंग):
डब्ल्यूआईआई के विश्लेषण के आधार पर कैमरा ट्रैपिंग का ग्रिड तैयार होता है, जिसे जंगल में लगाया जाता है। बाद में ट्रैप में आए फोटो फिर से अध्ययन के लिए संस्थान को भेजे जाते हैं।
2022 की ‘स्टेटस ऑफ टाइगर्स, को-प्रीडेटर्स एंड प्रे इन इंडिया’ रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड में बाघों की संख्या 560 दर्ज की गई थी। अब एक बार फिर से इस आंकड़े को अपडेट करने की प्रक्रिया शुरू हो रही है।
राज्य की जिम्मेदारी बढ़ी
उत्तराखंड, विशेषकर कार्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व, भारत में बाघों की संख्या के लिहाज से महत्वपूर्ण केंद्र हैं। ऐसे में यहां की सटीक गणना राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर संरक्षण नीति को दिशा देती है। वन्यजीव विशेषज्ञों और संरक्षण से जुड़ी संस्थाओं की निगाहें अब आगामी बाघ गणना रिपोर्ट पर टिकी हैं। यह रिपोर्ट न सिर्फ राज्य में बाघों की स्थिति को स्पष्ट करेगी, बल्कि पर्यावरणीय नीतियों को भी आकार देगी।