देहरादून : अहमदाबाद विमान हादसे के बाद से जॉली ग्रांट एयरपोर्ट के आसपास के रिहाइशी इलाके के लोगों में भी एक अनजाना सा डर बैठ गया है। खासकर भनियावाला, जोली गांव, अटूरवाला गांव में 20 हजार के आसपास आबादी रहती है. यहां पर चार मंजिल ऊंचे मकान और गेस्ट हाउस के अलावा लोगों के आवास भी मौजूद हैं, विमान बेहद ही नजदीक से रनवे पर उतरता है। जिसके कारण हमेशा खतरा बना रहता है।
अहमदाबाद विमान हादसे ने ग्वालियर (मध्य प्रदेश) के जिगसौली गांव निवासी MBBS छात्र आर्यन राजपूत की जिंदगी छीन ली. बीजे मेडिकल कॉलेज में सेकंड ईयर का छात्र आर्यन उस समय हॉस्टल की मेस में खाना खा रहा था। बाद में उन्होंने अपने दोस्त को मोबाइल देते हुए कहा, ”तुम चलो, मैं हाथ धोकर आता हूं.” दोस्त मेस से बाहर निकल गया, लेकिन आर्यन अंदर ही रह गया. उसी क्षण विमान दुर्घटना ने सब कुछ तहस-नहस कर दिया।
अहमदाबाद नगर निगम के 40 से ज्यादा इंजीनियर्स और 100 से ज्यादा मजदूरों की मदद से रात भर विमान का मलबा हटाने का काम तेज़ी से चला. इसके लिए दर्जन भर से ज्यादा भारी मशीनरी को मंगवाया गया. बड़ी-बड़ी ड्रिलिंग मशीन से मेस की छत को काटकर विमान का टेल हटाया जा रहा है.
विमान का ब्लैक बॉक्स मिल चुका है. हालांकि, इसके डिकोड करने में थोड़ा वक्त लगेगा. तभी पता लगेगा कि हादसा कैसे और किन हालात में हुआ है. एक ब्लैक बॉक्स दो हिस्से में बंटा होता है. इसमें एक होता है सीवीआर जिसे कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर भी कहा जाता है. इसमें पायलट और सह पायलट की बातचीत, अलार्म और कॉकपिट की आवाजें रिकॉर्ड होती हैं. वहीं दूसरा हिस्सा होता है एफडीआर यानी फ्लाइट डाटा रिकॉर्डर होता है. किसी भी विमान हादसे की जांच में ब्लैक बॉक्स की भूमिका बहुत अहम होती है.