देहरादून। राजधानी देहरादून के जिला चिकित्सालय समेत अन्य अस्पतालों में समय से पूर्व होने वाले प्रसव के मामले बढ़ रहे हैं। इसका असर नवजात के स्वास्थ्य पर देखने को मिल रहा है। चिकित्सकों ने इसको लेकर चिंता जाहिर की है। अब बहुत सी मां अपने बच्चे को नौ महीने तक कोख में नहीं पाल पाती हैं। बच्चे नौ के बजाय सात महीने में ही पैदा हो रहे हैं। इससे बच्चों को कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी मुश्किलें आ रही हैं। दून के जिला अस्पताल के चिकित्सकों के मुताबिक, हर रोज ओपीडी में आने वालीं 150 गर्भवतियों में से करीब 15 महिलाएं ऐसी होती हैं, जो समय पूर्व प्रसव पीड़ा से जूझती हैं।
दून अस्पताल में बने 22 बेड के नवजात गहन देखभाल इकाई (एनआईसीयू) में भी करीब 10 से 12 नवजात समय से पहले जन्म लेने के कारण भर्ती किए जाते हैं। चिकित्सकों के मुताबिक, इन दिनों इस तरह के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। दून जिला अस्पताल की महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. मेघा असवाल बताती हैं कि जो महिलाएं बार-बार गर्भधारण करती हैं, उनमें समय पूर्व प्रसव का सबसे अधिक खतरा होता है। इसके अलावा जिन महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान खून की कमी और पेशाब का इंफेक्शन होता है, वे भी समय से पहले प्रसव पीड़ा का शिकार हो जाती हैं। इसके पीछे की मुख्य वजह महिलाओं की अव्यवस्थित जीवनशैली है।
चिकित्सक डॉ. मेघा असवाल के मुताबिक, गर्भधारण के 37 सप्ताह पूरे होने के बाद जन्म लेने वाले बच्चों को सामान्य माना जाता है, जबकि इन दिनों बड़ी संख्या में गर्भवतियों को 32 सप्ताह में ही प्रसव पीड़ा शुरू हो जाती है और पर समय से पहले ही बच्चे को जन्म दे देती हैं। इसका मां के साथ ही नवजात के स्वास्थ्य पर भी काफी असर देखने को मिलता है। गर्भावस्था के दौरान भारी वजन उठाने से भी बचना चाहिए।
दून अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अशोक ने बताया, समय से पूर्व प्रसव वाले नवजातों के मस्तिष्क और फेफड़े पूर्णरूप से विकसित नहीं हो पाते हैं। ऐसे में उनको कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा इस तरह के नवजातों की आंतों में पस भी बन जाता है। इससे वे दूध को पचा नहीं पाते हैं। महिलाओं को दो बच्चों के बीच में कम से कम तीन वर्ष का अंतराल रखना चाहिए, गर्भावस्था के दौरान नियमित जांच करवानी चाहिए, समय से पूर्व प्रसव पीड़ा होने पर एक घंटे के अंदर चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए।