देहरादून। उत्तराखंड में दूर के वोट कहे जाने वाले पोस्टल बैलेट यानी डाक मतपत्र भी सियासी बाजी पलटने का माद्दा रखते हैं। हर घर फौजी वाले राज्य में 2008 का लोकसभा उपचुनाव हो या राज्य में 2022 में हुए विधानसभा चुनाव, हर बार इन पोस्टल बैलेट ने अपनी ताकत का अहसास कराया है। इस बार लोकसभा चुनाव में प्रदेश में 93,187 सर्विस मतदाता हैं, जिनके लिए ई-पोस्टल बैलेट प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। सभी राजनीतिक दलों की नजर इन पर है।
मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी (सेनि) गढ़वाल से सांसद थे। भाजपा ने उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया। गढ़वाल लोस सीट खाली हो गई। वर्ष 2008 में इस पर लोकसभा उपचुनाव हुआ, जिसमें कांग्रेस के सतपाल महाराज के सामने भाजपा ने ले. जनरल टीपीएस रावत (सेनि) को उतारा। जनरल रावत ने खंडूड़ी के लिए अपनी विधानसभा धूमाकोट सीट खाली की थी। उस उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी जनरल रावत कांग्रेस के महाराज से साधारण मतपत्रों की गिनती में 251 मतों से हार गए।
अचानक मतगणना के दौरान 16 हजार डाक मतपत्र आने के बाद वह लगभग 8,000 मतों से विजयी घोषित हुए। राज्य में लोकसभा चुनाव के इतिहास में यह पहली पोस्टल बैलेट से जीत थी। 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को सबसे ज्यादा पोस्टल बैलेट मत मिले। कांग्रेस दूसरे व आप तीसरे स्थान पर रही। अल्मोड़ा जैसी कई विधानसभा सीटों पर पोस्टल बैलेट के वोटों ने हार-जीत तय की। एक लाख सात हजार से ज्यादा मत पोस्टल बैलेट से पड़े थे। इनमें भाजपा को 42,593 वोट पड़े, जबकि कांग्रेस को 33,504 वोट पड़े थे।
अल्मोड़ा : यहां दोनों प्रत्याशियों के बीच हार-जीत का अंतर 127 वोटों का रहा। कांग्रेस के मनोज तिवारी ने भाजपा के कैलाश शर्मा को हराया। इस सीट पर कांग्रेस को 747 और भाजपा को 579 पोस्टल बैलेट से मत मिले।
श्रीनगर : यहां भाजपा के डॉ. धन सिंह रावत और कांग्रेस के गणेश गोदियाल के बीच 587 मतों के अंतर से हारजीत हुई। भाजपा को 795 और कांग्रेस को 455 वोट मिले। यानी अगर यहां कांग्रेस को ज्यादा पोस्टल बैलेट मिलते तो नतीजे कुछ और हो सकते थे।
बदरीनाथ : यहां कांग्रेस के राजेंद्र भंडारी ने भाजपा के महेंद्र भट्ट को 2,066 वोटों के अंतर से हराया। कांग्रेस को 1,223 और भाजपा को 1,204 पोस्टल बैलेट से मत मिले।
टिहरी : यहां भाजपा के किशोर उपाध्याय ने उत्तराखंड जन एकता पार्टी के दिनेश धनै को 951 वोटों से पराजित किया। इस सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी धन सिंह नेगी तीसरे स्थान पर रहे। यहां भाजपा को 611, कांग्रेस को 236 और दिनेश धनै को 451 पोस्टल बैलेट के वोट मिले। यानी डाकमत पत्र यहां नतीजे बदल सकते थे।
द्वाराहाट : इस सीट पर कांग्रेस के मदन सिंह बिष्ट ने भाजपा के अनिल शाही को 366 वोटों के नजदीकी अंतर से हराया। इस सीट पर कुल 1004 पोस्टल बैलेट थे, जिनमें से 484 भाजपा को, 300 कांग्रेस को और 166 यूकेडी के पुष्पेश त्रिपाठी को मिले। यहां पोस्टल बैलेट से नतीजे बदल सकते थे।
धारचूला : इस सीट पर कांग्रेस के हरीश धामी ने भाजपा के धन सिंह धामी को 1,128 वोटों के नजदीकी अंतर से हराया है। इस सीट पर कुल 1,626 पोस्टल बैलेट थे, जिनमें से भाजपा को 821 और कांग्रेस को 705 मिले हैं। यहां नतीजे बदल सकते थे।
ऐसे बहुत सारे लोग हैं, जिनके लिए चुनाव में वोट डालना संभव नहीं है। इनमें सबसे प्रमुख वे सैनिक हैं, जो देश की सीमा पर तैनात हैं। सैनिक अपने गृहनगर पर जाकर वोट नहीं ही दे पाते। पोस्टल बैलेट की धारणा मुख्यत: इनके लिए ही बनी है। सैनिकों के अलावा वे सरकारी कर्मचारी और पुलिस और अन्य सुरक्षाकर्मी भी होते हैं, चुनाव में ड्यूटी करते हैं। ये लोग भी अपने क्षेत्र में जा कर वोट नहीं दे पाते हैं। चुनाव आयोग यह पहले ही तय कर लेता है कि किन लोगों को और कितने लोगों को पोस्टल बैलेट देना है। इसके बाद इन्हीं लोगों को कागज में मुद्रित खास मतपत्र भेजा जाता है, जो पोस्टल बैलेट होता है।
यह प्रक्रिया इलेक्ट्रॉनिकली ट्रांस्मिटेड पोस्टल बैलेट सिस्टम (ईटीपीबीएस) होती है। इस मतपत्र को प्राप्त करने वाला नागरिक अपने पसंदीदा प्रत्याशी को चुन कर इलेक्ट्रॉनिक या डाक से चुनाव आयोग को लौटा देता है। चुनाव आयोग अपनी नियमावली 1961 के नियम 23 में संशोधन कर लोगों को पोस्टल बैलेट या डाक मतपत्र की मदद से चुनाव में वोट डालने की सुविधा देता है। मतगणना के दौरान सबसे पहले पोस्टल बैलेट की गिनती शुरू होती है। इसके बाद ईवीएम में दर्ज वोटों की गिनती की जाती है।
राज्य के लोकसभा चुनाव में इस बार 93,187 सर्विस मतदाता हैं, जिनके लिए ई-पोस्टल प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है। इनमें गढ़वाल लोकसभा सीट पर सबसे ज्यादा 34,845 सर्विस मतदाता हैं। टिहरी लोकसभा सीट पर 12,862, अल्मोड़ा लोकसभा सीट पर 29,105, नैनीताल-ऊधमसिंह नगर सीट पर 10,629 और हरिद्वार लोकसभा सीट पर 5746 सर्विस मतदाता शामिल हैं।
सर्विस मतदाताओं के लिए ई-पोस्टल बैलेट प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इस बार हमारा लक्ष्य शत-प्रतिशत पोस्टल बैलेट से मतदान का है। पिछले साल पोस्टल बैलेट से करीब 70 प्रतिशत मतदान हुआ था। -डॉ. बीवीआरसी पुरुषोत्तम, मुख्य चुनाव अधिकारी, उत्तराखंड
निश्चित तौर पर पोस्टल बैलेट चुनाव नतीजों को प्रभावित करते हैं। 2008 का लोकसभा उपचुनाव इसका पहला उदाहरण है। विधानसभा चुनावों में भी पोस्टल बैलेट का असर नजर आता है। -जय सिंह रावत, राजनीतिक विश्लेषक