देहरादून। प्रधान महालेखाकार कार्यालय ने भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की मार्च 2020 व 2021 की ऑडिट रिपोर्टों में उजागर हुए गंभीर किस्म के वित्तीय घपलों की एक सूची निदेशक विजिलेंस को भेजी है। इससे राज्य के छह विभाग इन घपलों को लेकर विजिलेंस के निशाने पर आ गए हैं।
माना जा रहा है कि इन मामलों में विभागीय स्तर पर कार्रवाई हुई तो कतिपय अफसर व कर्मचारियों की जवाबदेही तय हो सकती है। निदेशक विजिलेंस ने शासन को महालेखाकार कार्यालय की मंशा से अवगत करा दिया है। उसके पत्र पर कार्मिक एवं सतर्कता विभाग ने संबंधित विभागों को विभागवार घपलों की सूची भेजकर इस संबंध में रिपोर्ट मांगी है। अपर सचिव कार्मिक ललित मोहन रयाल ने इसकी पुष्टि की है।
महालेखाकार कार्यालय में वरिष्ठ लेखा परीक्षा अधिकारी ने निदेशक विजिलेंस को पत्र लिखा जिसमें 2022-23 की अवधि में जारी हुई दो वर्षों की ऑडिट रिपोर्ट के विभिन्न प्रस्तर संलग्न हैं। समाज कल्याण, सिंचाई, वन, संस्कृति, लघु एवं खनिज विभाग से संबंधित इन प्रस्तरों में पेंशन भुगतान में वित्तीय गड़बड़ी, रॉयल्टी वसूली में फर्जीवाड़ा, खराब वित्तीय प्रबंधन लाखों की चपत लगने के मामले शामिल हैं। पत्र में इन सभी प्रकरणों में कार्रवाई की अपेक्षा की गई है।
पुलिस अधीक्षक विजिलेंस (मुख्यालय) ने कार्मिक सतर्कता विभाग को पत्र भेजकर कैग के पत्र और सूची के आधार पर संबंधित प्रशासनिक विभाग के स्तर पर कार्रवाई का अनुरोध किया। वहीं, विजिलेंस के पत्र पर कार्मिक विभाग ने समाज कल्याण, सिंचाई, वन, संस्कृति, औद्योगिक विकास (खनन) के एसीएस, प्रमुख सचिव व सचिव को पत्र लिखकर आवश्यक कार्रवाई कर इसकी सूचना विभाग को भेजने का अनुरोध किया है।
समाज कल्याण विभाग : विभाग में एक ही आधार संख्या, एक ही बैंक खाता संख्या व एक ही बीपीएल आईडी पर एक से अधिक पेंशन दी गई। एक ही व्यक्ति को दो-दो पेंशन पर 63.62 लाख रुपये का दोहरा भुगतान हुआ।
सिंचाई विभाग : सिंचाई खंड देहरादून ने रॉयल्टी के साक्ष्य में फर्जी फार्म जमा किया।
वन विभाग : 2018-20 में वनाग्नि से करीब 7634.28 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ। इससे एक करोड़ 46 लाख 55 हजार रुपये का नुकसान हुआ। विभाग यूकाडा व संबंधित से 2.69 करोड़ की रिकवरी करने में विफल रहा।
संस्कृति विभाग : खराब वित्तीय प्रबंधन के कारण 57.61 लाख रुपये खर्च कर दिए गए। विभाग पर 31.52 की देनदारी बनी हुई है।
लघु एवं खनिज विभाग : भुगतान की गई रॉयल्टी के साक्ष्य के रूप में फॉर्म की नकली प्रति प्रस्तुत कर दी गई, जिससे 9.35 लाख रुपये की चपत लगी।
आईएफएमएस डेटा : जांच में कैग ने पाया कि डीडीओ ने 18.34 लाख रुपये विभागीय खाते से निकालकर स्वयं के खाते में जमा कर दिए। इसे सरकारी खातों में खर्च के रूप में दिखाया गया।