
देहरादून। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उत्तराखंड आगमन से पहले सोशल मीडिया पर एक जाली पत्र वायरल होने के मामले ने प्रशासन और पुलिस को सतर्क कर दिया है। यह पत्र देवभूमि उत्तराखंड यूनिवर्सिटी के आधिकारिक लेटरहेड पर तैयार किया गया था, जिसमें लिखा गया था कि जो छात्र देहरादून में पीएम मोदी की रैली में शामिल होंगे, उन्हें यूनिवर्सिटी की ओर से अधिक अंक दिए जाएंगे। यह सूचना जैसे ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रसारित हुई, लोगों के बीच भ्रम फैल गया और कुछ समूहों ने इसे सत्य मानकर साझा करना शुरू कर दिया।
मामले की गंभीरता को देखते हुए प्रेमनगर थाना पुलिस ने तत्काल कार्रवाई करते हुए अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है। देहरादून के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) अजय सिंह ने बताया कि सोशल मीडिया पर यह जाली पत्र तेजी से वायरल हो रहा था, जिससे प्रधानमंत्री के कार्यक्रम की साख और सुरक्षा को लेकर गलत संदेश फैल सकता था।
देवभूमि उत्तराखंड यूनिवर्सिटी के कुलसचिव सुभाषित ने इस पत्र को पूरी तरह फर्जी बताया है। उन्होंने थाना प्रेमनगर में एक लिखित प्रार्थनापत्र देकर स्पष्ट किया कि विश्वविद्यालय की ओर से ऐसा कोई आधिकारिक पत्र जारी नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि किसी ने यूनिवर्सिटी के लेटरहेड और हस्ताक्षर की नकली प्रति तैयार कर इसे इंटरनेट पर अपलोड कर दिया।
प्रेमनगर पुलिस ने यूनिवर्सिटी के आवेदन के आधार पर आईटी एक्ट और अन्य संबद्ध धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया है। पुलिस टीम साइबर जांच के माध्यम से यह पता लगाने में जुटी है कि पत्र सबसे पहले किसने और कहां से पोस्ट किया था। प्रारंभिक जांच में यह भी सामने आया है कि इस फर्जी पत्र को कुछ सोशल मीडिया ग्रुपों और मैसेजिंग ऐप्स के ज़रिए फैलाया गया।
अधिकारियों का कहना है कि इस तरह की हरकत न केवल भ्रामक सूचना फैलाने की श्रेणी में आती है बल्कि यह प्रधानमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था के दृष्टिकोण से भी गंभीर अपराध है। उन्होंने नागरिकों से अपील की है कि वे किसी भी सूचना को साझा करने से पहले उसकी सत्यता की पुष्टि करें।
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को उत्तराखंड राज्य स्थापना के रजत जयंती समारोह में भाग लेने देहरादून आ रहे हैं। इस आयोजन को लेकर शहर में सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम किए गए हैं। पुलिस, खुफिया एजेंसियां और साइबर सेल मिलकर सोशल मीडिया गतिविधियों पर भी बारीकी से नज़र रख रही हैं ताकि किसी भी तरह की अफवाह या फर्जी सूचना फैलाने वालों पर तुरंत कार्रवाई की जा सके।
यह मामला उत्तराखंड में डिजिटल युग की चुनौतियों और सोशल मीडिया पर जिम्मेदारी की कमी को उजागर करता है। फर्जी खबरें अब महज़ अफवाह नहीं रह गईं, बल्कि वे लोकतांत्रिक प्रक्रिया और सरकारी कार्यक्रमों की विश्वसनीयता को प्रभावित करने लगी हैं।




