
देहरादून | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे कर लिए हैं। इस अवसर पर संघ ने शताब्दी वर्ष को जन-जागरण, सामाजिक समरसता और राष्ट्र निर्माण के दृष्टिकोण से एक बड़े अभियान के रूप में मनाने की घोषणा की है। इस वर्षभर चलने वाले आयोजन में संघ पूरे उत्तराखंड के 20 लाख परिवारों तक पहुंचने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रहा है।
शताब्दी वर्ष में ‘पंच परिवर्तन’ पर जोर
आरएसएस ने शताब्दी वर्ष के कार्यक्रमों का केंद्रबिंदु ‘पंच परिवर्तन’ को बनाया है। इसके तहत समाज में व्यापक रूप से पाँच क्षेत्रों में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास किया जाएगा —
- स्व परिवर्तन : स्वयं में आत्मबोध और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना। इसमें स्वदेशी उत्पादों का उपयोग, भारतीय भाषाओं का सम्मान और संस्कारों की पुनर्स्थापना जैसे पहलू शामिल हैं।
- सामाजिक समरसता परिवर्तन : समाज में जाति, वर्ग और आर्थिक भेदभाव को मिटाने तथा सभी वर्गों के बीच एकता और समानता को मजबूत करने पर बल।
- पर्यावरण परिवर्तन : जल संरक्षण, वृक्षारोपण और पॉलिथीन मुक्त समाज की दिशा में कार्य करना।
- कुटुंब प्रबोधन परिवर्तन : परिवार को समाज की सबसे मजबूत इकाई मानते हुए पारिवारिक मूल्यों, संवाद और सहयोग की परंपरा को पुनर्जीवित करना।
- धर्म जागरण परिवर्तन : भारतीय संस्कृति और धर्म के मूल्यों को जानने, अपनाने और उनकी रक्षा करने का आह्वान।
उत्तराखंड में 1351 स्थानों पर आयोजन
संघ ने प्रदेश के 26 जिलों में 1351 मंडल, बस्ती और नगर स्तर पर कार्यक्रम आयोजित करने की योजना बनाई है। इन आयोजनों के माध्यम से संघ समाज के हर वर्ग तक पहुँचना चाहता है। हालांकि, राज्य के आपदाग्रस्त क्षेत्रों को इन कार्यक्रमों से अलग रखा गया है, लेकिन उनके आसपास के इलाकों में विशेष गतिविधियाँ होंगी ताकि राहत कार्य और सामाजिक सहयोग दोनों समानांतर चल सकें।
स्वयंसेवकों से जिम्मेदारी निभाने की अपील
शताब्दी वर्ष के कार्यक्रमों में स्वयंसेवकों से आग्रह किया जाएगा कि वे व्यक्तिगत स्तर पर पानी, पेड़ और पॉलिथीन के प्रति जिम्मेदारी निभाएं, स्वदेशी उत्पाद अपनाएं और समाज में सकारात्मक बदलाव का नेतृत्व करें। संघ का उद्देश्य केवल वैचारिक नहीं, बल्कि व्यवहारिक परिवर्तन लाना है ताकि “व्यक्ति से समाज और समाज से राष्ट्र” के स्तर पर समग्र विकास सुनिश्चित किया जा सके।