
देहरादून। कंक्रीट के बढ़ते जंगल, घटती हरियाली और शहरीकरण के चलते गौरैया के ऊपर संकट बढ़ा है। शहर में चालीस प्रतिशत तक गौरैया की संख्या में कमी आई है। विशेषज्ञों के अनुसार अगर कुछ बातों का ध्यान रखें तो गौरैया पर मंडरा रहे संकट को कम कर सकते हैं। गौरैया इंसानों के साथ रहती है।
पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार गौरैया के सामने रहने, प्रजनन के लिए घोंसला बनाने से लेकर खाने को लेकर संकट बढ़ा है। पक्षी विशेषज्ञ डॉ. रमन कहते हैं कि गौरैया सुराख जैसी जगहों पर घोंसले बनाती थी। पहले छप्पर होते थे, पत्थर की छत होती थी, जहां पर वह रहती थी। पर अब पूरे घर कंक्रीट के बन रहे हैं।
पहले घरों में गेहूं साफ करने के साथ फैलाया जाता था, दाल को साफ किया जाता था। इसके दाने फैलते थे, जो चिड़ियों के काम आते थे। अब यह कम हुआ है, इससे भोजन का संकट बढ़ा है। छोटी गौरैया दाने नहीं खा सकती है, वह छोटे कीड़ों पर निर्भर रहती है, वह भी कम हुए हैं।
शहरों में चालीस प्रतिशत तक गौरैया कम हुई है। जबकि गांवों में अभी स्थिति तुलनात्मक तौर पर ठीक है। मुख्य वन संरक्षक मनोज चंद्रन कहते हैं कि गौरैया के सामने भोजन, रहने की जगह का संकट बढ़ा है। जो गेहूं समेत अन्य खाद्य पदार्थ हैं, उनमें रासायनिक पदार्थों का इस्तेमाल होता है, इससे उनको नुकसान पहुंचता है। अगर कुछ बातों का ध्यान रखें तो चिड़ियों के लिए स्थिति में कुछ सुधार कर सकते हैं। घर में हरियाली रखें, पूरा घर कंक्रीट का न बनाए। घरों में सुराख जैसे जगहों को रखें।