देहरादून। उत्तराखंड में जंगल इस साल पूरी गर्मी धधकते रहेंगे, लेकिन आग बुझाने के लिए हेलिकॉप्टर नहीं आएंगे। मुख्य वन संरक्षक वनाग्नि एवं आपदा प्रबंधन निशांत वर्मा बताते हैं कि जंगलों की आग पर काबू पाने के लिए हेलिकॉप्टरों से मदद लिए जाने का कोई प्रस्ताव नहीं है, विभाग को इसकी जरूरत नहीं है।
प्रदेश के जंगलों में आग के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। गर्मी तेज होते ही जगह-जगह से आग के प्रकरण सामने आ रहे हैं। बुधवार को गढ़वाल और कुमाऊं में 31 जगह जंगलों में आग लगी। हालांकि बृहस्पतिवार को वनाग्नि के प्रकरणों में राहत है। गढ़वाल, कुमाऊं और वन्य जीव क्षेत्र में पिछले 24 घंटे में वनाग्नि के 9 प्रकरण सामने आए हैं, जिससे 10 हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र प्रभावित हुआ है।
मुख्य वन संरक्षक निशांत वर्मा बताते हैं कि जंगल में आग लगने की सूचना मिलते ही क्रू टीम मौके पर जाकर आग बुझा रही है। विभाग के पास फायर वाचर हैं, कुछ नए कर्मचारी भी मिले हैं। राज्य वनाग्नि एवं आपदा प्रबंधन कक्ष को जहां कहीं से भी जंगल में आग लगने की सूचना मिलती है, प्रयास किया जाता है कि जल्द से जल्द टीम मौके पर पहुंचे। कुछ जगह जंगलों के नजदीक खेतों में खरपतवार जलाने से जंगलों में आग फैलने की शिकायत मिली है, इसके लिए ग्रामीणों को भी जागरूक किया जा रहा है।
दुनियाभर में जंगलों में आग लगने पर हेलीकॉप्टरों की मदद ली जाती है। इसमें लचीली बाल्टी या बेली टैंक होता है। हर बार आग पर उड़ान भरने पर ये हेलीकॉप्टर चार हजार लीटर तक पानी गिराते हैं। देश में जंगलों की आग बुझाने में वायुसेना के एमआई 17-वी 5 हेलीकॉप्टर काफी उपयोगी रहे हैं। वन विभाग के अधिकारी बताते हैं कि उत्तराखंड में वर्ष 2020-21 में हेलीकॉप्टर से जंगलों की आग बुझाने के प्रयास किए गए थे, लेकिन पहाड़ में इस तरह के प्रयास सफल नहीं रहे।
उत्तराखंड में पिछले तीन दिन में 56 स्थानों पर जंगल में आग लगने के मामले सामने आए हैं। जिससे 73 हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र प्रभावित हुआ है। इसे मिलाकर अब तक वनाग्नि की 131 घटनाओं में 188 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र प्रभावित हो चुका है। बृहस्पतिवार को नैनीताल वन प्रभाग के आरक्षित क्षेत्र में दो, तराई पूर्वी वन प्रभाग में पांच, लैंसडाउन वन प्रभाग में एक और राजाजी टाइगर रिजर्व आरक्षित क्षेत्र में वनाग्नि का एक मामला सामने आया है।