कानपुर। कानपुर में लखनऊ से आई नेशनल इनवेस्टीगेशन (एनआईए) की टीम ने पाॅपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) से कनेक्शन के शक में बुधवार को मूलगंज थाना क्षेत्र के हीरामन का पुरवा में डॉक्टर के क्लीनिक व घर पर छापा मारा। टीम ने डॉक्टर के घर से दर्जनों पासपोर्ट और इस्लामिक लिट्रेचर बरामद किया। डॉक्टर समेत छह लोगों को मूलगंज थाने में लाकर घंटों पूछताछ चली।
इसके बाद पासपोर्ट उन्हें सौंप दिए, लेकिन इस्लामिक लिट्रेचर को जांच के लिए साथ ले गए। टीम ने जांच चलने तक सभी को शहर में ही रहने की हिदायत दी है। एनआईए की चार सदस्यीय टीम ने सुबह मूलगंज में हीरामन का पुरवा में रहने वाले डॉ. अबरार के क्लीनिक और यहीं पर स्थित उनके घर पर छापा मारा। टीम को डॉ. अबरार के क्लीनक पर लगे बोर्ड में उनके नाम के नीचे बीयूएमएमएस (एलआई) लिखा मिला।
इसी बोर्ड पर इस्लामिक बुक स्टाल भी लिखा मिला, तो टीम ने घर के अंदर चेक किया, जहां बड़ी संख्या में इस्लामिक किताबें रखी मिलीं। अधिकारियों ने डॉ. अबरार से गाइडेंस पब्लिकेशन के डॉ. ख्वाजा के बारे में पूछताछ की। डॉक्टर ने बताया कि डॉ. ख्वाजा से अक्सर मदरसों के सम्मेलन में उनकी मुलाकात होती थी। फोन पर भी बातचीत की बात बताई।
डॉ. ख्वाजा के विषय में और अधिक जानकारी नहीं मिल सकी। इसके बाद टीम डॉ. अबरार समेत छह लोगों को उठाकर मूलगंज थाने ले गई। थाने में करीब 5.30 घंटे तक सभी से अलग-अलग पूछताछ की गई। सूत्रों के अनुसार एनआईए की टीम ने डॉक्टर के घर से बड़ी संख्या में मिले पासपोर्ट के बारे में पूछा, तो डॉक्टर के बेटे शोएब ने उन्हें खुद को हज कमेटी का सदस्य होने की जानकारी दी।
बताया हज जाने वालों का पासपोर्ट आदि बनवाने का काम भी करते हैं। सभी पासपोर्ट हज पर जाने वाले लोगों के बताए। इस पर अधिकारियों ने पासपोर्ट लौटा दिए। मूलगंज थाना प्रभारी सुखवीर सिंह ने बताया कि टीम सभी को सुबह आठ बजे लेकर थाने पहुंची थी। इसके बाद दोपहर करीब 1.30 बजे तक सभी से पूछताछ की गई है। टीम ने सभी को पूछताछ के लिए बुलाए जाने पर हाजिर होने की हिदायत देकर छोड़ दिया है।
इससे पूर्व भी डॉ. अबरार से तीन जून 2022 को हुई हिंसा के संबंध में एनआईए की टीम ने पूछताछ की थी। उस वक्त डॉक्टर पर दंगाइयों को फंडिंग का आरोप लगा था। फिलहाल एनआईए के अफसर और डॉक्टर के परिजनों ने इस संबंध में कुछ भी बोलने से इन्कार कर दिए।
पूछताछ के दौरान एनआईए की टीम ने डॉक्टर अबरार से पीएफआई के कार्यक्रमों में शामिल होने की वजह और कार्यक्रम का उद्देश्य पूछा। सभी अपने बयान में कार्यक्रम में शामिल न होने व खुद को बेगुनाह बताते रहे। सूत्रों के अनुसार एनआईए के पास डॉक्टर व अन्य लोगों के कुछ मोबाइल बने हुए फुटेज मौजूद हैं, जिसमें सभी के मौजूद होने का दावा किया जा रहा है। बैंक खातों से फंडिंग की आशंका के चलते टीम ने डॉक्टर व उनके बेटों के बैंक खातों की भी डिटेल खंगाली है। टीम डॉक्टर व उसके परिजनों के मोबाइल नंबरों की सीडीआर खंगाल रही है।
डिप्टी पड़ाव में पीएफआई का कार्यालय है। 2022 में संगठन पर प्रतिबंध लगने के बाद कार्यालय पर ताला लग गया था। एनआईए की छापेमारी को लेकर कमिश्नरी पुलिस का भी अब तक कोई बयान सामने नहीं आया है। सीएए और एनआरसी के विरोध में हुए प्रदर्शन में कानपुर में जमकर हिंसा हुई थी। इसमें तीन प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी। पुलिस की जांच में हिंसा के पीछे पीएफआई का ही नाम सामने आया था।
वर्ष 2006 में मनिथा नीति पसाराई (एमएनपी) और नेशनल डेवलपमेंट फंड (एनडीएफ) नामक संगठन ने मिलकर पीएफआई का गठन किया था। ये संगठन शुरुआत में दक्षिण भारत के राज्यों में सक्रिय था, लेकिन अब यूपी, बिहार समेत 23 राज्यों में फैल चुका है।
शहर में सीएए के विरोध में दिसंबर 2019 में हुई हिंसा में मुख्य सूत्रधार माने जा रहे पीएफआई के पांच सदस्यों को गिरफ्तार करके जेल भेजा गया था। सूत्रों के अनुसार इनमें से तीन आरोपी नई सड़क बवाल में दोबारा जेल भेजे गए थे, जिसमें से एक गंभीर बीमारी से ग्रसित है। एक की तलाश जारी है। इनके अलावा भी शहर में पीएफआई से जुड़े लोगों के अभी भी शहर में रहकर देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने की आशंका है। इसे लेकर सुरक्षा एजेंसियां जानकारी जुटा रही हैं। लखनऊ से आई एनआईए की टीम के अभी भी शहर में सक्रिय होने की चर्चा है।