देहरादून। इस मंदिर में रोजाना माता तीन रूप बदलती है। वह प्रात:काल कन्या, दोपहर में युवती व शाम को वृद्धा का रूप धारण करती हैं। पौराणिक धारणा के अनुसार एक बार भयंकर बाढ़ में कालीमठ मंदिर बह गया था। लेकिन धारी देवी की प्रतिमा एक चट्टान से सटी होने के कारण धारो गांव में बह कर आ गई थी। गांववालों को धारी देवी की ईश्वरीय आवाज सुनाई दी थी कि उनकी प्रतिमा को वहीं स्थापित किया जाए। जिसके बाद गांव वालों ने माता के मंदिर की स्थापना वहीं कर दी।पुजारियों के अनुसार मंदिर में माँ काली की प्रतिमा द्वापर युग से ही स्थापित है। कालीमठ एवं कालीस्य मठों में माँ काली की प्रतिमा क्रोध मुद्रा में है, परन्तु धारी देवी मंदिर में काली की प्रतिमा शांत मुद्रा में स्थित है।
मारकंडे पुराण के अनुसार कालीमठ में मां दुर्गा का काली के रूप में अवतार हुआ था। यहां से मां काली कलियासौड़ में अलकनंदा नदी किनारे प्राचीन शिला पर आकर शांत हुई और कल्याणी स्वरूप में आकर मां दुर्गा भक्तों का कल्याण करने लगी। पांडे वंशजों की ओर से पुजारी के रूप में 17 वीं शताब्दी से सिद्धपीठ धारी देवी में भगवती देवी की पूजा अर्चना की जाती रही है। वर्ष 1987 से पूर्व काली की उग्र पूजा के साथ ही यहां पर बकरों की बलि भी दी जाती थी। बाद में भक्तों के अनुरोध, पहल और मंदिर के पंडितों के सहयोग से 1987 में बलि बंद हो गयी और तब से बलि की जगह हवन और यज्ञ के साथ ही फूल व नारियल से मां की पूजा अर्चन की जाने लगी। सिद्धपीठ मां धारी देवी भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती है। मनोकामना पूर्ण होने पर भक्त मंदिर में घंटियां और छत्र चढ़ाते हैं। श्रीनगर से लगभग चौदह किमी दूर बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर कलियासौड़ में अलकनंदा नदी के बायें पाश्र्व पर सिद्धपीठ धारी देवी विराजमान है। ऋषिकेश से लगभग 118 किमी दूर और श्रीनगर से लगभग चौदह किमी दूर बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर कलियासौड़ में राष्ट्रीय राजमार्ग से लगभग आधा किमी की पैदल दूरी तय कर मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।