देहरादून। उत्तराखंड का जो शहर 200 साल पहले केवल 700 रुपए में बसाया गया था, वह आज प्रतिदिन 10 करोड़ से ज्यादा की आय दे रहा है। जी हां, हम बात कर रहे हैं टिहरी शहर की, जो आज टिहरी झील में समा चुका है। लेकिन शायद ये बहुत कम लोगों को पता है कि 200 साल पर इस ऐतिहासिक टिहरी शहर को केवल 700 रुपये में बसाया गया था। आइए जानते हैं इस शहर का इतिहास:
30 दिसंबर 1815 को पड़ी थी टिहरी की नींव
- टिहरी रियासत के तत्कालीन महाराजा सुदर्शन शाह ने 30 दिसंबर 1815 को टिहरी नगर की नींव रखी थी।
- 42 वर्ग किलोमीटर में फैली झील से झांकते पुरानी टिहरी के अवशेष अब भी पुरानी दास्तां बयां करते हैं।
- तब इस ऐतिहासिक नगरी को केवल सात सौ रुपये में बसाया गया था।
- जो 29 अक्टूबर 2005 को टिहरी हमेशा के लिए झील में विलीन होकर इतिहास बना गया।
- टिहरी का इतिहास भाग-1 किताब में टिहरी शहर का शुरुआती वर्णन मिलता है।
- जिसके अनुसार शुरुआत में टिहरी राजमहल के अलावा महज 30 मकान ही बनाए गए थे।
टिहरी रियासत का अस्तित्व गढ़वाल में गोरखा आक्रमण से जुड़ा माना जाता है। 1803 में गोरखाओं से हुए युद्ध में तत्कालीन महाराजा प्रद्युमन शाह के वीरगति प्राप्त होने के बाद उनके पुत्र सुदर्शन शाह गद्दी पर बैठे। उन्होंने 1815 में अग्रेजों की मदद से गोरखाओं को हराया था।
तब अंग्रेजों और सुदर्शन शाह के बीच एक संधि हुई। जिसके अनुसार राजा को तत्कालीन राजधानी श्रीनगर (जिला पौड़ी गढ़वाल) से टिहरी आना पड़ा। अलकनंदा पार का वह क्षेत्र जो अंग्रेजों ने अपने पास रखा ब्रिटिश गढ़वाल के नाम से जाना गया। वहीं सुदर्शन शाह ने अपनी राजधानी के लिए भागीरथी और भिलंगना के संगम पर स्थित भूमि को चुना। तब राजकोष की स्थिति अच्छी नहीं थी। इसलिए शुरुआत में टिहरी नगर को साधारण तरीके से बसाया गया।
इसके बाद 1887 में महाराजा कीर्तिशाह ने नए राजमहल को बनवाया। टिहरी का ऐतिहासिक घंटाघर भी उन्हीं के शासनकाल में बनाया गया था। यह घंटाघर लंदन में बने घंटाघर की प्रतिकृति था। भागीरथी नदी पर बनी टीएचडीसीआइएल (टिहरी जल विद्युत विकास निगम इंडिया लिमिटेड) की टिहरी जल विद्युत परियोजना में रोजाना औसतन आठ से नौ मिलियन यूनिट बिजली पैदा की जाती है। जिसकी रोजाना की लागत करोड़ों में है। वैसे इस प्रोजेक्ट की प्रतिदिन 25 मिलियन यूनिट तक बिजली उत्पादित करने की क्षमता है।