देहरादून। जलवायु परिवर्तन के कारण प्रदेश के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में स्थित ग्लेश्यिर यदि भविष्य में और तेजी से पिघलते हैं तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इस समस्या से निपटने के लिए अभी से भविष्य की योजना बनाने की दिशा में काम किया जाएगा। तेजी से पिघलते ग्लेशियरों के कारण निचले इलाकों में स्थित नदी घाटियों का पूरा ईका सिस्टम बदल जाएगा, जबकि मीठे पानी की मांग लगातार बढ़ रही है।
शुक्रवार को स्विस एजेंसी फॉर डेवलपमेंट एंड कोऑपरेशन (एसडीसी) की ओर से भागीरथी बेसिन और इसके उप-बेसिन के लिए ग्लेशियो-हाइड्रोलॉजिकल मॉडलिंग और आईडब्ल्यूआरएम योजना पर हितधारकों की एक बैठक राजपुर रोड स्थित एक होटल में हुई। एसडीसी 2020-24 के दौरान ‘हिमालय में जलवायु परिवर्तन व अनुकूलन को मजबूत करना (एससीए-हिमालय) परियोजना’ पर कार्य कर रहा है। इसमें राज्य का पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन निदेशालय भी शामिल है।
बैठक में हितधारकों ने इस बात पर जोर दिया कि आने वाले समय में कृषि, औद्योगिक और घरेलू सभी क्षेत्रों में पानी की मांग बढ़ेगी। इसलिए इसकी निरंतरता को बनाए रखने के लिए अभी से वैज्ञानिक पहलुओं पर सोचना होगा। देश में पानी की उपलब्धता का सबसे बड़ा स्रोत हिमालय है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण इसके ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। इसके लिए सभी हिमालयी राज्यों एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (आईडब्ल्यूआरएम) पर अभी से काम करने की जरूरत है।
बैठक में आईएफएस एसपी सुबुद्धि, नीना ग्रेवाल, कार्यकारी निदेशक, राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण डॉ. पीयूष रौतेला, डिप्टी हेड एसडीसी दिव्या शर्मा, टीम लीडर रिद्धिमा सूद, टीएचडीसी के डीजीएम एके सिंह, एनआईएच के वैज्ञानिक संजय जैन, सीडब्ल्यूसी के एसई राजेश कुमार, एसयूडीएमए के गिरीश जोशी, राहुल जुगरान आदि मौजूद थे।