शासन ने 2003 में लगा दी थी रोक तो कैसे हुई भर्तियां
विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण ने बताया कि जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में एक शासनादेश का उल्लेख किया है। यह शासनादेश कार्मिक विभाग ने छह फरवरी 2003 को जारी किया था, जिसमें विभिन्न विभागों में तदर्थ, संविदा, नियत वेतन, दैनिक वेतन पर की जाने वाली नियुक्तियों पर रोक लगाई गई थी।
देहरादून। विधानसभा में नौकरियों के लिए न तो कोई विज्ञापन निकाला गया न ही चयन समिति बनी। न कोई परीक्षा हुई। केवल व्यक्तिगत पत्रों पर रेवड़ी की तरह नौकरियां बांटी गई। बैकडोर भर्तियों की जांच करने वाली विशेषज्ञ समिति ने जांच की तो भर्तियों की पोल परत-दर-परत खुलती चली गई।
विधानसभा में पहुंच वालों के लिए नौकरी आसान रही। जांच समिति की रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है कि 228 तदर्थ नियुक्तियों और 22 उपनल के माध्यम से नियुक्तियों में भर्तियों का कोई पैमाना नहीं था। जिसने भी पत्र लिखकर खुद के बेरोजगार होने का हवाला देते हुए नौकरी मांगी, उसे किसी भी पद पर नियुक्ति दे दी गई।
सूत्रों के मुताबिक, जांच समिति ने यह भी तथ्य पकड़ा है कि कई पदों पर ऐसे युवाओं को नौकरी दी गई जो कि उस पद की अर्हता ही नहीं रखते थे।
जांच समिति ने पकड़ीं गड़बड़ियां…
- सीधी भर्ती के लिए निर्धारित चयन समिति का गठन नहीं किया गया। तदर्थ नियुक्तियां बिना चयन समिति की सिफारिश की गई.
- तदर्थ नियुक्तियां करने के लिए विज्ञापन जारी नहीं किया गया न ही कोई सार्वजनिक सूचना दी गई। रोजगार कार्यालय से भी नाम नहीं मांगे गए.
- तदर्थ नियुक्ति करने के इच्छुक उम्मीदवारों से आवेदन पत्र नहीं मांगे गए। इसके बजाय जिसने भी व्यक्तिगत तौर पर आवेदन पत्र दिया, उसी पर नियुक्ति दे दी गई.
- तदर्थ नियुक्ति करने के लिए कोई प्रतियोगी परीक्षा आयोजित नहीं की गई.
- तदर्थ भर्तियों के लिए सभी पात्र व इच्छुक उम्मीदवारों को समानता का अवसर नहीं दिया गया। इससे भारत के संविधान के अनुच्छेद-14 और अनुच्छेद-16 का उल्लंघन हुआ है.