
देहरादून। उत्तराखंड में बिजली उपभोक्ताओं के साथ दोहरे मापदंड अपनाए जाने का एक बड़ा मामला सामने आया है। एक ओर जहां आम उपभोक्ताओं के दो-चार हजार रुपये के बकाये पर बिना ज्यादा मोहलत दिए बिजली कनेक्शन काट दिए जाते हैं, वहीं दूसरी ओर सरकारी विभागों पर ऊर्जा निगम का 45 करोड़ रुपये से अधिक का बिजली बिल वर्षों से बकाया होने के बावजूद ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है। इस स्थिति ने ऊर्जा निगम की कार्यप्रणाली और उसकी वसूली नीति पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
उत्तराखंड पहाड़ी महासभा की महासचिव गीता बिष्ट ने इस मुद्दे को लेकर ऊर्जा निगम के प्रबंध निदेशक को पत्र भेजते हुए तत्काल बकाया वसूली की मांग की है। उन्होंने पत्र में स्पष्ट किया है कि सरकारी विभागों पर लंबित यह भारी बकाया न केवल निगम की वित्तीय सेहत को कमजोर कर रहा है, बल्कि इसका सीधा असर आम उपभोक्ताओं पर पड़ रहा है, जिन्हें हर साल बढ़ी हुई बिजली दरों का सामना करना पड़ता है।
गीता बिष्ट का आरोप है कि ऊर्जा निगम इस बकाया राशि को घाटे के रूप में दिखाकर हर वर्ष उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग के समक्ष बिजली दरों में वृद्धि का प्रस्ताव रखता है। यदि समय रहते सरकारी विभागों से बकाया वसूली कर ली जाए, तो न तो घाटे की स्थिति बने और न ही आम जनता पर बिजली महंगी करने का अतिरिक्त बोझ डाला जाए।
उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि जब आम नागरिकों के मामलों में निगम बिना किसी नरमी के सख्त कदम उठाता है, तो फिर सरकारी विभागों के खिलाफ वही सख्ती क्यों नहीं दिखाई जाती। उनके अनुसार यह स्थिति न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि उपभोक्ताओं के साथ खुला भेदभाव भी है।
महासभा की महासचिव ने मांग की है कि ऊर्जा निगम में अवर अभियंता स्तर से लेकर उच्च अधिकारियों तक राजस्व वसूली की स्पष्ट जवाबदेही तय की जाए। जिन क्षेत्रों में सबसे अधिक बकायेदार सरकारी विभाग हैं, वहां तैनात अधिकारियों की भूमिका की जांच हो और लापरवाही पाए जाने पर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए।
गीता बिष्ट ने यह भी बताया कि वह जल्द ही सरकारी विभागों पर बकाया बिजली बिलों की पूरी सूची उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष को सौंपेंगी। इसके साथ ही आयोग से यह मांग की जाएगी कि ऊर्जा निगम से यह स्पष्ट जवाब लिया जाए कि वर्षों से लंबित इस वसूली में आखिर किस स्तर पर और क्यों लापरवाही बरती जा रही है।
यह मामला अब केवल बकाया वसूली तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह बिजली व्यवस्था की पारदर्शिता, जवाबदेही और आम उपभोक्ताओं के अधिकारों से भी जुड़ गया है। आने वाले दिनों में नियामक आयोग की भूमिका और ऊर्जा निगम की कार्रवाई पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी।




