
देहरादून। द्वितीय केदार भगवान मध्यमहेश्वर की उत्सव डोली अपने देव निशानों के साथ शीतकालीन गद्दीस्थल श्री ओंकारेश्वर मंदिर, उखीमठ पहुंच गई। 18 नवंबर को मध्यमहेश्वर मंदिर के कपाट बंद होने के बाद डोली परंपरागत यात्रा क्रम अनुसार गौंडार, रांसी और गिरिया से होती हुई शुक्रवार को उखीमठ पहुंची, जहां भक्तों ने भव्य स्वागत किया। मंदिर परिसर को आकर्षक फूलों से सजाया गया और श्रद्धालुओं ने दर्शन के साथ भंडारे का आयोजन भी किया। इसी के साथ 20 नवंबर से तीन दिवसीय मदमहेश्वर मेला आरंभ हो चुका है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग ले रहे हैं।
भगवान मध्यमहेश्वर की देव डोली के आगमन पर रावल भीमाशंकर लिंग ने मंगलचौंरी और ब्राह्मणखोली में पूजा-अर्चना कर धार्मिक अनुष्ठान पूरे किए। उन्होंने पारंपरिक विधि के अनुसार डोली पर सोने का छत्र अर्पित किया। उखीमठ पहुंचने पर सेना के बैंड और स्थानीय पारंपरिक वाद्य यंत्रों की मंगल ध्वनियों के बीच डोली का अत्यंत श्रद्धापूर्ण स्वागत किया गया। भक्तों, पुजारियों और ग्रामीणों ने डोली पर पुष्पवृष्टि की और दर्शन के लिए लंबी कतारें लगीं।
डोली के श्री ओंकारेश्वर मंदिर परिसर में प्रवेश के बाद वैदिक मंत्रोच्चार के बीच विधिवत पूजा-अर्चना संपन्न हुई, जिसके साथ ही मध्यमहेश्वर की शीतकालीन पूजा औपचारिक रूप से आरंभ हो गई। उखीमठ की यह शीतकालीन गद्दी पूरे पर्वतीय क्षेत्र में आस्था और परंपरा का महत्वपूर्ण केंद्र मानी जाती है, जहां अगले कई महीनों तक भक्त भगवान मध्यमहेश्वर के दर्शन और पूजा के लिए पहुंचते रहेंगे।




