
बहुचर्चित बनभूलपुरा रेलवे अतिक्रमण प्रकरण पर सुप्रीम कोर्ट में शनिवार को हुई सुनवाई के बाद अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि पहले से लगी अंतरिम रोक फिलहाल बनी रहेगी। मामले की अगली सुनवाई के लिए दो दिसंबर की तिथि तय की गई है। अदालत के इस निर्णय के बाद हाईकोर्ट के उस आदेश पर फिलहाल रोक कायम है, जिसमें बनभूलपुरा क्षेत्र से अतिक्रमण हटाने के लिए निर्देश दिए गए थे।
इस महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जयमाला बागची की खंडपीठ के समक्ष हुई। इस दौरान रेलवे, राज्य सरकार और कब्जेदारों की ओर से उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने अपनी-अपनी दलीलें विस्तार से रखीं। याचिकाकर्ता अब्दुल मतीन सिद्धकी द्वारा दायर लीव टू अपील में हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है, जिसके आधार पर यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
सुनवाई के दौरान रेलवे की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ऐश्वर्या भाटी ने तर्क रखे कि रेल सेवाओं के विस्तार और निर्माण कार्यों के लिए लगभग 30 हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता है, जिस पर लंबे समय से अतिक्रमण मौजूद है। रेलवे ने भूमि को जल्द खाली कराने के लिए न्यायालय से हस्तक्षेप की मांग करते हुए कहा कि विकास कार्यों में देरी से राष्ट्रीय महत्व की परियोजनाएं प्रभावित हो रही हैं।
दूसरी ओर, कब्जेदारों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद, प्रशांत भूषण सहित अन्य अधिवक्ताओं ने दलील दी कि रेलवे द्वारा अब जिस भूमि की मांग की जा रही है, वह पहले लिखित दावे में शामिल नहीं थी। उन्होंने यह भी कहा कि रिटेनिंग वॉल के निर्माण के बाद रेलवे के ढांचे को किसी तरह का खतरा नहीं है, इसलिए तत्काल अतिक्रमण हटाने का आधार कमजोर है। साथ ही, उन्होंने बनभूलपुरा के निवासियों को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत स्थानांतरित करने के प्रस्ताव का विरोध करते हुए इसे अनुचित और गैर-व्यवहारिक बताया।
रेलवे की ओर से इस दलील पर आपत्ति जताई गई और कहा गया कि भूमि की उपलब्धता रेलवे परियोजनाओं के लिए अनिवार्य है। अदालत ने सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद अंतरिम रोक को बरकरार रखा और अगली सुनवाई तक किसी भी तरह की कार्रवाई पर रोक जारी रहने का निर्देश दिया।
अब पूरे प्रदेश की नजर दो दिसंबर को होने वाली अगली सुनवाई पर होगी, जहां यह तय होगा कि भविष्य में इस जटिल और संवेदनशील मामले का रुख किस दिशा में आगे बढ़ेगा।




