
चमोली। चमोली जिले के ऐतिहासिक 73वें राजकीय औद्योगिक विकास एवं सांस्कृतिक मेले की शुरुआत शुक्रवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने दीप प्रज्ज्वलन कर की। सात दिनों तक चलने वाले इस मेले में प्रतिदिन विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम, औद्योगिक प्रदर्शनी, स्थानीय उत्पादों की बिक्री और सामाजिक-शैक्षणिक गतिविधियां आयोजित की जाएंगी।
गौचर मेला न सिर्फ अपर गढ़वाल का सबसे बड़ा मेला माना जाता है, बल्कि अपनी विरासत और इतिहास के कारण राज्य स्तर पर इसकी एक विशेष पहचान भी है। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “वन डिस्ट्रिक्ट, वन फेयर” कॉन्सेप्ट के चलते इस मेले को राष्ट्रीय पहचान मिलने की दिशा में भी नई संभावनाएं खुल गई हैं।
सम्मान समारोह
उद्घाटन के दौरान मुख्यमंत्री ने विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वाले लोगों को सम्मानित किया—
- पत्रकारिता के लिए डॉ. हरीश मैखुरी को पंडित गोविंद प्रसाद नौटियाल पुरस्कार प्रदान किया गया।
- शिक्षा एवं साहित्य में योगदान के लिए वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद डॉ. नंद किशोर हटवाल को पंडित महेशानंद नौटियाल सम्मान दिया गया।
मेले का इतिहास
- गौचर मेला वर्ष 1943 में भोटिया जनजाति और स्थानीय लोगों की पहल पर शुरू हुआ।
- इसका पहला उद्घाटन तत्कालीन गढ़वाल कमिश्नर बरनेडी ने किया था।
- उस समय यह मेला भारत–तिब्बत व्यापार का प्रमुख केंद्र हुआ करता था।
- समय के साथ यह मेला औद्योगिक, सांस्कृतिक और व्यापारिक गतिविधियों का महत्वपूर्ण मंच बन गया।
व्यापार संघ के जिला महामंत्री सुनील पंवार के अनुसार, मेले की बढ़ती लोकप्रियता और इसकी ऐतिहासिक महत्ता को देखते हुए इसे राजकीय मेला घोषित किया गया है।
सात दिनों तक चलने वाले इस मेले में उत्तराखंड की सांस्कृतिक झलक, पारंपरिक हस्तशिल्प, स्थानीय व्यंजन, व्यापारिक स्टाल, खेलकूद और रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों की भव्य प्रस्तुतियां देखने को मिलेंगी।




