
देहरादून। आज के दौर में सोशल मीडिया, सड़क, कार्यस्थल और निजी बातचीत में गाली-गलौज का इस्तेमाल एक सामान्य प्रवृत्ति की तरह बढ़ता जा रहा है। कई लोग इसे आधुनिकता, अभिव्यक्ति या गुस्से का सहज माध्यम मानने लगे हैं, लेकिन मनोवैज्ञानिकों के अनुसार यह प्रवृत्ति केवल एक बुरी आदत नहीं, बल्कि मानसिक रोग के लक्षण भी हो सकती है। यदि किसी व्यक्ति के व्यवहार में बार-बार बिना कारण अपशब्दों का प्रयोग होने लगे या वह परिस्थितियों की परवाह किए बिना गाली देने लगे, तो यह टॉरेट सिंड्रोम (Tourette Syndrome) नामक बीमारी का संकेत हो सकता है।
एम्स ऋषिकेश के मनोरोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. रवि गुप्ता बताते हैं कि टॉरेट सिंड्रोम एक मानसिक विकार है, जो मस्तिष्क के बेसल गैंगलिया (Basal Ganglia) हिस्से में असंतुलन के कारण उत्पन्न होता है। यह मस्तिष्क का वह भाग है जो शरीर की गतिविधियों और भाषा पर नियंत्रण रखता है। जब यह सर्किट असंतुलित हो जाता है, तो व्यक्ति अपनी भाषा, हरकतों और भावनाओं पर नियंत्रण खो देता है। परिणामस्वरूप, वह अनायास ही गाली जैसे शब्द बोल देता है, या ऐसी हरकतें करने लगता है जो सामान्य सामाजिक व्यवहार से बाहर होती हैं।
डॉ. गुप्ता के अनुसार, आजकल 20 से 40 वर्ष की आयु वर्ग के लोग इस विकार की चपेट में तेजी से आ रहे हैं। एम्स ऋषिकेश के मनोरोग विभाग की ओपीडी में हर महीने दो से तीन नए मरीजों में टॉरेट सिंड्रोम की पुष्टि हो रही है। यह बीमारी अक्सर इंपल्स कंट्रोल डिसऑर्डर (Impulse Control Disorder) से भी जुड़ी होती है, जिसमें व्यक्ति अपने आवेगों पर नियंत्रण नहीं रख पाता।
विशेषज्ञ बताते हैं कि सामान्य तनाव या चिंता की स्थिति में किसी व्यक्ति का गाली देना एक सामान्य मानवीय प्रतिक्रिया मानी जा सकती है। लेकिन जब यह व्यवहार खुशी, सामान्य बातचीत, या बिना किसी कारण के भी दिखने लगे, तो यह मानसिक असंतुलन का सूचक हो सकता है। कई बार ऐसे लोग खुद यह समझ नहीं पाते कि वे क्यों अपशब्द बोल रहे हैं। यही कारण है कि यह बीमारी धीरे-धीरे व्यक्ति के आत्मविश्वास, रिश्तों और सामाजिक जीवन को प्रभावित करती है।
जिला चिकित्सालय की वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. निशा सिंगला कहती हैं कि टॉरेट सिंड्रोम से पीड़ित लोग अक्सर अपने व्यवहार से परेशान रहते हैं। वे गालियां देने के बाद पछतावा महसूस करते हैं, परंतु खुद को रोक नहीं पाते। उनका कहना है कि ऐसे लोग किसी भी भावनात्मक उत्तेजना — चाहे वह खुशी हो, गुस्सा या डर — में अचानक अपशब्द बोलने लगते हैं। यह व्यवहार उनके नियंत्रण में नहीं होता और धीरे-धीरे उनके आत्मविश्वास को कमजोर कर देता है।
डॉ. गुप्ता ने बताया कि इस बीमारी की पुष्टि आमतौर पर क्लीनिकल जांच के माध्यम से की जाती है, लेकिन कुछ मामलों में एमआरआई, सीटी स्कैन और अन्य न्यूरोलॉजिकल जांचों की भी आवश्यकता होती है। अभी तक इस विकार के भौतिक कारणों का स्पष्ट पता नहीं चल पाया है, लेकिन यह माना जाता है कि यह न्यूरोट्रांसमीटर असंतुलन और वंशानुगत कारणों से भी जुड़ा हो सकता है।
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसे मामलों में काउंसलिंग, व्यवहार चिकित्सा (Behavioral Therapy) और कुछ विशेष दवाओं के प्रयोग से स्थिति को नियंत्रण में लाया जा सकता है। साथ ही, समाज में इस विषय को लेकर जागरूकता बढ़ाना भी आवश्यक है, ताकि लोग ऐसे व्यक्तियों को अपराधी नहीं बल्कि रोगी समझें।
आज जब अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर अपशब्दों का प्रयोग सामान्य माना जाने लगा है, यह रिपोर्ट चेतावनी देती है कि हर बात में गाली देना कोई ताकत नहीं बल्कि मानसिक असंतुलन का संकेत हो सकता है। समय रहते चिकित्सकीय परामर्श और परिवार का सहयोग इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति को सामान्य जीवन की ओर लौटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।




