
गुना। कानून की रखवाली का दायित्व निभाने वाला जब स्वयं कानून तोड़ दे, तो न्याय व्यवस्था की नींव हिल जाती है। मध्य प्रदेश के गुना जिले से ऐसा ही मामला सामने आया है, जहां बर्खास्त एएसआई रामवीर सिंह कुशवाह उर्फ रामवीर दाऊ पर एक दशक पुराने ट्रक चालक की संदिग्ध मौत के मामले में फिर से गिरफ्तारी की गई है। वर्ष 2015 के इस प्रकरण में पहले इसे आत्महत्या बताया गया था, लेकिन हाई कोर्ट के आदेश पर हुई नई जांच में खुलासा हुआ कि यह मामला टॉर्चर और साजिश से जुड़ा था।
यह घटना 20 जून 2015 की रात की है, जब ललितपुर (उत्तर प्रदेश) निवासी माखन कुशवाह (30) जलने की हालत में पाया गया था। इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। उस समय धरनावदा थाने के प्रभारी रामवीर सिंह कुशवाह ने जांच में यह दिखाया कि मृतक ने पत्नी की मृत्यु के गम में डीजल डालकर आत्महत्या कर ली। मामला “पत्नी के रंज में आत्महत्या” के रूप में बंद कर दिया गया और खारिजी स्वीकृति के लिए डायरी भेज दी गई।
लेकिन 2019 में मृतक के पिता गोपाल कुशवाह ने इस जांच को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की। अदालत ने दोबारा जांच के आदेश दिए, जिसके बाद पूरा सच सामने आया — माखन की पत्नी तो जीवित थी और किसी अन्य व्यक्ति के साथ रह रही थी। यानी, आत्महत्या की कहानी पूरी तरह झूठी थी।
नई विवेचना में यह भी सामने आया कि माखन को थाने में ही टॉर्चर किया गया था। शव मिलने की सूचना और एमएलसी रिपोर्ट के बीच पांच घंटे का अंतर पाया गया। एंबुलेंस का कोई रिकॉर्ड नहीं था, घटनास्थल के फोटोग्राफ डायरी में नहीं थे, फॉरेंसिक जांच अधूरी रही, विसरा तक नहीं भेजा गया। यहां तक कि मृतक के ट्रक की जांच भी नहीं की गई। मृतक के तलबों पर फफोले पाए गए, जो आत्मदाह में सामान्यतः नहीं बनते। यह सब दर्शाता है कि पूरी घटना को आत्महत्या का रूप देने की साजिश रची गई थी।
गुना के पुलिस अधीक्षक अंकित सोनी ने इस प्रकरण को गंभीरता से लेते हुए 15 दिन के भीतर नई जांच पूरी कराई। साक्ष्यों से स्पष्ट हुआ कि मृतक की मृत्यु में रामवीर की सीधी भूमिका थी। इसके बाद पुलिस ने उसे चांचौड़ा जेल से, जहाँ वह पहले से धोखाधड़ी (धारा 420) के मामले में बंद था, फॉर्मल गिरफ्तारी में लेकर न्यायालय में पेश किया। अदालत ने उसे पुनः न्यायिक हिरासत में भेज दिया।
नई जांच में रामवीर कुशवाह के खिलाफ धारा 201, 203, 204, 218, 193, 342 और 120(B) के तहत प्रकरण दर्ज किया गया है — जिनमें सबूत मिटाने, झूठी रिपोर्ट बनाने, कैदी को अवैध रूप से बंद रखने और साजिश रचने जैसे गंभीर अपराध शामिल हैं। अब यह मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। दस साल पुराने इस केस की फाइल के खुलने से न केवल पुलिस विभाग की कार्यप्रणाली पर प्रश्न उठे हैं, बल्कि पीड़ित परिवार को वर्षों बाद न्याय की एक नई उम्मीद भी दिखाई देने लगी है।






