
देहरादून | वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने कानून की कुछ धाराओं पर रोक लगाते हुए कहा कि इससे नागरिकों के मौलिक अधिकार प्रभावित हो सकते हैं। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय वक्फ के इतिहास और उससे जुड़े धार्मिक स्वतंत्रता के प्रश्न को अच्छी तरह जानता है। उन्होंने भरोसा जताया कि यदि सरकार न्याय नहीं कर पाई तो सुप्रीम कोर्ट न्याय जरूर देगा।
सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 को चुनौती दी गई थी। सोमवार को सुनवाई के बाद अदालत ने कानून के कई विवादित प्रावधानों पर रोक लगा दी। अदालत ने कहा कि सरकार द्वारा लाए गए कुछ प्रावधान धार्मिक स्वतंत्रता और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के खिलाफ हैं।
इसी बीच कांग्रेस नेता हरीश रावत ने कहा कि अदालत का फैसला उम्मीद जगाने वाला है। उन्होंने कहा, “सुप्रीम कोर्ट वक्फ के इतिहास को भी जानता है और इससे जुड़े धार्मिक स्वतंत्रता के पहलुओं को भी। सरकार का उद्देश्य स्पष्ट है, लेकिन यदि सरकार न्याय नहीं कर पाई तो न्यायालय से ही लोगों को उम्मीद है।”
सुप्रीम कोर्ट का फैसला – किन प्रावधानों पर लगी रोक?
- इस्लाम का अनुयायी होने की शर्त
अधिनियम में कहा गया था कि कोई व्यक्ति वक्फ तभी बना सकता है जब वह कम से कम पांच वर्षों तक इस्लाम का अनुयायी रहा हो। अदालत ने इस प्रावधान पर रोक लगाते हुए कहा कि जब तक यह स्पष्ट करने के लिए नियम नहीं बन जाते कि किसी की धार्मिक पहचान किस आधार पर तय होगी, तब तक इसे लागू नहीं किया जा सकता। - कलेक्टर को दी गई शक्तियां
संशोधित अधिनियम में प्रावधान था कि कलेक्टर यह तय करेगा कि घोषित वक्फ संपत्ति सरकारी है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर भी रोक लगाते हुए कहा कि यह नागरिकों के व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन है और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के खिलाफ है। - वक्फ परिषदों में गैर-मुस्लिम सदस्य
अधिनियम में अधिक संख्या में गैर-मुस्लिमों को वक्फ बोर्ड और परिषदों में शामिल करने का प्रावधान था। अदालत ने कहा कि वक्फ बोर्ड में तीन से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य शामिल नहीं किए जाने चाहिए, और परिषदों में भी कुल मिलाकर चार से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होने चाहिए।
राजनीतिक प्रतिक्रिया
कांग्रेस नेता हरीश रावत का बयान यह संकेत देता है कि इस मुद्दे को विपक्ष केवल कानूनी ही नहीं, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण मान रहा है। उनका कहना है कि वक्फ का इतिहास भारत की धार्मिक विविधता और सहअस्तित्व से जुड़ा हुआ है, और इसे किसी भी तरह के राजनीतिक हस्तक्षेप से बचाया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का यह अंतरिम फैसला वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता पर बड़े सवाल खड़े करता है। जहां एक ओर सरकार इसे पारदर्शिता और नियंत्रण का साधन मान रही है, वहीं विपक्ष और धार्मिक संगठन इसे धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप मान रहे हैं। आने वाले दिनों में इस मामले की अंतिम सुनवाई देश की राजनीति और सामाजिक ताने-बाने पर गहरा असर डाल सकती है।