
देहरादून | उत्तरकाशी जिले के धराली में 5 अगस्त को आई भीषण आपदा ने पूरे क्षेत्र को हिला कर रख दिया था। खीरगंगा से आए बाढ़ के पानी और मलबे ने धराली बाजार को पूरी तरह तहस-नहस कर दिया। घर, दुकानें और सड़कें बह गईं, जबकि स्थानीय लोग बेघर हो गए। आपदा के कारणों को वैज्ञानिक दृष्टि से समझने के लिए शासन ने विशेषज्ञों की एक उच्च स्तरीय टीम का गठन किया था, जो अब क्षेत्र का अध्ययन कर लौट आई है। इस टीम की रिपोर्ट पर अब सबकी निगाहें टिकी हुई हैं।
शासन की ओर से गठित इस टीम में वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान, सीबीआरआई रुड़की, आईआईटी रुड़की और भूगर्भ सर्वेक्षण (GSI) के वैज्ञानिक शामिल थे। टीम ने 14 अगस्त को धराली पहुंचकर स्थलीय और हवाई सर्वे किया। इसके तहत आपदा प्रभावित बाजार क्षेत्र, खीरगंगा नदी का कैचमेंट एरिया और आसपास की पहाड़ियों का अध्ययन किया गया।
हवाई और स्थलीय सर्वेक्षण
वैज्ञानिकों ने जहां धराली और हर्षिल में बने अस्थायी झील जैसे स्वरूपों का निरीक्षण किया, वहीं हवाई सर्वेक्षण के जरिए खीरगंगा के ऊपरी क्षेत्र को देखने की कोशिश की गई। हालांकि ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बादलों की घनी मौजूदगी के कारण खीरगंगा के पूरे कैचमेंट एरिया का आकलन संभव नहीं हो पाया।
आपदा का सबसे बड़ा कारण खीरगंगा से आया विशाल मलबा माना जा रहा है। यह मलबा आखिर कितनी दूरी से बहकर धराली तक पहुंचा, इसका अनुमान अब उपग्रह चित्रों (Satellite Images) के जरिए लगाया जाएगा। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस अध्ययन से आपदा की जड़ तक पहुंचने में मदद मिलेगी।
टीम लौटी, रिपोर्ट की प्रतीक्षा
शनिवार शाम को टीम वापस लौट चुकी है। अब सभी की नजरें उसकी रिपोर्ट पर हैं। वैज्ञानिकों ने अभी इस अध्ययन से जुड़ी कोई जानकारी साझा करने से साफ इनकार किया है। उनका कहना है कि जब तक रिपोर्ट पूरी तरह तैयार नहीं हो जाती, तब तक किसी भी निष्कर्ष को सार्वजनिक करना जल्दबाजी होगी। इस संबंध में आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास सचिव विनोद कुमार सुमन का कहना है कि, “रिपोर्ट आने के बाद ही आपदा के कारणों और भविष्य की रोकथाम से जुड़ी विस्तृत जानकारी दी जा सकती है।”
धराली और आसपास के लोगों में अब भी भय और असुरक्षा का माहौल है। जिन परिवारों ने अपने घर और दुकानें खो दीं, वे अस्थायी ठिकानों में रह रहे हैं। लोग सरकार से त्वरित पुनर्वास और भविष्य में ऐसी आपदाओं से बचाव के ठोस कदम उठाने की उम्मीद कर रहे हैं।