
देहरादून | उत्तराखंड के शैक्षिक परिदृश्य में एक क्रांतिकारी बदलाव आने जा रहा है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बुधवार को ऐलान किया कि प्रदेश के 550 सरकारी स्कूलों को देश के नामचीन औद्योगिक समूहों द्वारा गोद लिया जाएगा। इस ऐतिहासिक घोषणा के साथ राज्य सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में निजी सहभागिता की नई मिसाल पेश की है, जिससे विशेषकर दूरस्थ और संसाधन-वंचित स्कूलों में गुणात्मक सुधार की उम्मीद की जा रही है।
🎯 मुख्यमंत्री धामी का बड़ा ऐलान
देहरादून में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री ने इस योजना की जानकारी देते हुए कहा—
“आज का दिन उत्तराखंड के शैक्षणिक इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज होगा। यह पहल केवल स्कूलों के भवन और सुविधाओं को आधुनिक बनाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे बच्चों के भविष्य को संवारने और उनके सपनों को नया पंख देने की दिशा में एक ठोस कदम है।”
सीएम धामी ने बताया कि इन 550 स्कूलों में से अधिकांश वे हैं जो वर्षों से बुनियादी सुविधाओं की कमी, शिक्षक संकट और संसाधनों के अभाव से जूझ रहे थे। विशेषकर पर्वतीय और दूरस्थ इलाकों के स्कूल इस गोद योजना से लाभान्वित होंगे।
🏫 क्या है ‘स्कूल गोद योजना’?
यह योजना राज्य सरकार और औद्योगिक समूहों के बीच CSR (कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) सहभागिता के अंतर्गत चलाई जाएगी। इसके तहत प्रत्येक औद्योगिक समूह:
- गोद लिए गए स्कूलों में स्मार्ट क्लास, पुस्तकालय, शौचालय, पेयजल व्यवस्था जैसी बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित करेगा।
- स्कूलों में डिजिटल शिक्षा, कौशल प्रशिक्षण, खेल संसाधन और शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम भी संचालित करेगा।
- कुछ समूह छात्रवृत्ति या करियर काउंसलिंग जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध कराएंगे।
🌄 पर्वतीय क्षेत्रों को मिलेगा विशेष लाभ
राज्य सरकार के अनुसार प्राथमिकता उन स्कूलों को दी गई है जो दूरदराज और पर्वतीय इलाकों में स्थित हैं और जहां सरकारी निवेश के बावजूद अपेक्षित सुधार नहीं हो सका। इन स्कूलों के लिए यह योजना किसी वरदान से कम नहीं मानी जा रही।
🏢 कौन-कौन से उद्योग समूह जुड़े हैं?
हालांकि आधिकारिक सूची अभी सार्वजनिक नहीं की गई है, लेकिन सूत्रों के अनुसार टाटा समूह, रिलायंस इंडस्ट्रीज, अडानी फाउंडेशन, हीरो मोटोकॉर्प, HCL फाउंडेशन, विप्रो और एलएंडटी जैसे बड़े समूहों ने रुचि दिखाई है और कई पहले ही कार्य प्रारंभ कर चुके हैं।
📈 शिक्षा व्यवस्था में होगा आमूलचूल परिवर्तन
शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि यह योजना सिर्फ भवन निर्माण या सौंदर्यीकरण तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य समग्र शैक्षणिक गुणवत्ता में सुधार करना है।
शिक्षा सचिव डॉ. आर.के. तिवारी ने बताया—
“हर स्कूल के लिए एक विशिष्ट विकास योजना बनाई जाएगी, जिसमें स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार हस्तक्षेप होगा। निजी समूहों की जिम्मेदारी केवल CSR खर्च करने की नहीं, बल्कि गुणवत्ता सुनिश्चित करने की भी होगी।”
🙋♀️ 🙋♂️ क्या कह रहे हैं शिक्षक और अभिभावक?
सरकारी स्कूलों के प्रधानाचार्य, शिक्षक और अभिभावकों ने इस निर्णय का स्वागत किया है। उत्तरकाशी के एक सरकारी इंटर कॉलेज के शिक्षक मनोज पंवार कहते हैं—
“अगर वास्तव में निजी कंपनियां हमारे बच्चों के लिए बेहतर सुविधाएं ला रही हैं तो यह दूरस्थ गांवों के लिए संजीवनी साबित होगा। हम सालों से संसाधनों की बाट जोह रहे थे।”
वहीं एक छात्रा की मां विमला देवी ने कहा—
“अब लगता है कि हमारी बेटियों को भी अच्छे स्कूल में पढ़ाई का मौका मिलेगा, जैसे शहरों के बच्चों को मिलता है।”
🔍 चुनौतियां भी हैं
- निजी समूहों की नियत और दीर्घकालिक प्रतिबद्धता पर नजर रखनी होगी।
- CSR के तहत केवल एक बार की मदद की बजाय सतत निगरानी और विकास की जरूरत होगी।
- कुछ क्षेत्रों में स्थानीय राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण निष्पक्ष क्रियान्वयन में बाधा आ सकती है।