
देहरादून | उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के मुनस्यारी रेंज में वन विभाग द्वारा निर्मित इको हट, डोरमेट्री और ग्रोथ सेंटर समेत कई परियोजनाएं अब सवालों के घेरे में आ गई हैं। वर्ष 2019 में खलिया आरक्षित कक्ष संख्या-3 में करीब 1.64 करोड़ रुपये की लागत से किए गए निर्माण कार्यों में वन संरक्षण अधिनियम-1980 के उल्लंघन और वित्तीय अनियमितताओं के गंभीर आरोप लगे हैं। शासन ने तत्कालीन डीएफओ और वर्तमान पश्चिमी वृत्त वन संरक्षक डॉ. विनय कुमार भार्गव से 15 दिन के भीतर स्पष्टीकरण मांगा है।
क्या हैं आरोप?
- निर्माण कार्य बिना सक्षम प्राधिकरण की पूर्व स्वीकृति के कराए गए
- ईको हट, डोरमेट्री, वन कुटीर उत्पाद केंद्र और ग्रोथ सेंटर जैसी पक्की संरचनाएं अवैध रूप से बनीं
- निर्माण सामग्री की खरीद-फरोख्त बिना टेंडर प्रक्रिया के की गई
- एक निजी संस्था को मनमाने ढंग से चयनित कर दिया गया और एकमुश्त भुगतान भी कर दिया गया
- ईको डेवलपमेंट कमेटी पातलथौड़ मुनस्यारी को पर्यटन राजस्व का 70 प्रतिशत देने के लिए बिना मंजूरी एमओयू कर दिया गया
- वर्ष 2021-22 में महज 10 फायर लाइनों के अनुरक्षण के स्थान पर 90 किमी फायर लाइन सफाई दिखाकर 2 लाख रुपये खर्च किए गए
कैसे सामने आया मामला?
इस अनियमितता का खुलासा दस वर्षीय कार्ययोजना तैयार करते वक्त हुआ, जब मुख्य वन संरक्षक (कार्ययोजना) संजीव चतुर्वेदी द्वारा पिथौरागढ़ वन प्रभाग की गतिविधियों की समीक्षा की जा रही थी। 24 दिसंबर 2024 को संजीव चतुर्वेदी ने अपने पत्र में निर्माण कार्यों को वन संरक्षण अधिनियम के उल्लंघन के रूप में चिह्नित किया। उसके बाद 17 जनवरी 2025 को तत्कालीन प्रमुख वन संरक्षक धनंजय मोहन ने यह मामला प्रमुख सचिव वन आरके सुधांशु के संज्ञान में लाया।
वन सचिव ने मांगा जवाब
प्रमुख सचिव आरके सुधांशु ने डॉ. भार्गव को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए 15 दिन के भीतर सभी आरोपों पर लिखित स्पष्टीकरण देने को कहा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि समय पर जवाब नहीं आया, तो अग्रिम विभागीय और कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
नैसर्गिक न्याय का सिद्धांत और जवाबदेही
इस पूरे मामले में शासन ने “नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत” के अंतर्गत अधिकारी को अपनी बात रखने का अवसर दिया है। लेकिन जिस तरह से भारी बजट की परियोजनाओं में नियमों की अनदेखी हुई है, वह वन विभाग की आंतरिक पारदर्शिता और नियंत्रण प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
क्या कहते हैं जानकार?
वन विभाग के जानकारों का कहना है कि इको टूरिज्म जैसी योजनाएं ग्रामीण विकास और पर्यावरण संरक्षण दोनों में योगदान देती हैं, लेकिन अगर ऐसे कार्य बिना पारदर्शिता और अनुमोदन के होते हैं, तो इससे योजना की मूल भावना को ही ठेस पहुंचती है। साथ ही भ्रष्टाचार के आरोपों से पूरे तंत्र की साख प्रभावित होती है।