देहरादून। प्रदेश के सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापक के पदों पर चयनित 70 से अधिक महिला अभ्यर्थियों का चयन रद्द होगा। उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा समेत अन्य राज्यों की इन महिला अभ्यर्थियों का विवाह उत्तराखंड में हुआ है। शिक्षा निदेशालय ने आरक्षित वर्ग की इन महिला अभ्यर्थियों के मामले में शासन से दो महीने पहले दिशा-निर्देश मांगा था कि इन्हें नियुक्ति में आरक्षण का लाभ दिया जाए या नहीं। शासन के अधिकारियों के मुताबिक कार्मिक विभाग के 10 अक्तूबर 2002 के शासनादेश के मुताबिक इन्हें आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा सकता।
प्रदेश में इन दिनों 2906 पदों पर शिक्षकों की भर्ती की प्रक्रिया चल रही है। शिक्षा निदेशालय के मुताबिक भर्ती में ऐसे द्विवर्षीय डीएलएड अभ्यर्थियों ने भी आवेदन किया। जिनका विवाह अन्य राज्य से उत्तराखंड में हुआ है। इन अभ्यर्थियों की अन्य राज्य के आरक्षण एवं उत्तराखंड राज्य के आरक्षण की स्थिति समान है। शिक्षा निदेशालय ने 27 अगस्त 2024 को शासन को लिखे पत्र में कहा कि समान जाति के आधार पर अन्य राज्य के अभ्यर्थियों को उत्तराखंड राज्य में आरक्षण का लाभ दिया जाना है या नहीं इस संबंध में दिशा-निर्देश दिया जाए।
शासन के अधिकारियों के मुताबिक शिक्षा निदेशालय से दिशा-निर्देश मांगे जाने के बाद शासन ने समाज कल्याण, कार्मिक और न्याय विभाग से इस संबंध में सुझाव मांगा था। जिस पर कार्मिक विभाग के 10 अक्तूबर 2002 के शासनादेश का हवाला दिया गया कि उत्तराखंड राज्य के अलावा उत्तर प्रदेश एवं अन्य किसी राज्य का कोई व्यक्ति उत्तराखंड राज्य की राज्याधीन सेवाओं में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लिए अनुमन्य आरक्षण का लाभ नहीं पा सकेगा।
इसके अलावा समाज कल्याण विभाग के 29 दिसंबर 2008 का वह शासनादेश जो डीएम देहरादून को संबोधित है। उसके बिंदु संख्या तीन में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 74 में संरक्षण केवल सेवा शर्तों के लिए है। ऐसे संरक्षण में ऐसे कर्मचारियों की संतान को अपने पैतृक राज्य के अलावा दूसरे राज्य में आरक्षण की कोई सुविधा नहीं मिलेगी न ही उन्हें दूसरे राज्य के लिए अनुसूचित जाति, जनजाति व अन्य पिछड़ा वर्ग का समझा जाएगा। उन्हें आरक्षण की सुविधा अपने पैतृक राज्य में ही मिलेगी।
नियुक्ति की मांग को लेकर उत्तराखंड की बहुओं ने पिछले दिनों शिक्षा निदेशालय में प्रदर्शन कर धरना दिया था। उनका कहना था कि उत्तराखंड में उनका विवाह हुआ है। उन्हें नौकरी में आरक्षण का लाभ देते हुए नियुक्ति दी जाए। शिक्षक भर्ती में कुछ ऐसे अभ्यर्थी भी शामिल हैं। जिसने अन्य राज्यों से डीएलएड के लिए स्थायी निवास की बाध्यता के बावजूद डीएलएड करने के बाद उत्तराखंड में नियुक्ति पा ली। जबकि नियुक्ति के लिए उत्तराखंड का स्थायी या मूल निवासी होना जरूरी है।
कुछ अभ्यर्थियों ने यूपी का जाति प्रमाण पत्र रद्द करवाने के बाद उत्तराखंड से जाति एवं निवास प्रमाण पत्र बनवाया है। उनके पति के आधार पर यह प्रमाण पत्र बना है। जिसे डीएम ने जारी किया है। इनके आरक्षण के मामले में समाज कल्याण, कार्मिक और न्याय से परामर्श शासन को मिल चुका है, लेकिन अभी निदेशालय को कोई निर्देश जारी नहीं हुआ।
-आरएल आर्य, अपर निदेशक प्रारंभिक शिक्षा