गोपेश्वर। सीमांत जिले चमोली के पिलंग गांव के डॉ. मुकेश पंत इन दिनों चर्चाओं में हैं। लखनऊ के बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पाेलियो साइंस में वैज्ञानिक रहे डॉ. पंत ने गढ़वाल लोस सीट से पर्चा भरा है। वह स्वयं जानते हैं कि भाजपा और कांग्रेस सरीखे बड़े दलों के बीच स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर उनकी मौजूदगी के क्या मायने हैं? लेकिन उन्होंने चुनाव में पर्चा सिर्फ इसलिए भरा कि इस बहाने ही सही लोग उनकी बागवानी की चर्चा करें और इसे अपनाने के लिए प्रेरित हों।
डॉ. पंत रिटायरमेंट के बाद बदरीनाथ राजमार्ग पर लंगासू में बेकार पड़ी भूमि पर खेती-बाड़ी कर रहे हैं। पलायन और उजाड़ होती खेती से डॉ. पंत बेहद व्यथित हैं। उनकी इच्छा है कि पहाड़ का जनमानस अपने गांवों में रहे और अपने खेतों में खेती व बागवानी को अपनी आजीविका का जरिया बनाए। इसके लिए वे युवाओं और स्थानीय ग्रामीणों को प्रेरित करते हैं। वैज्ञानिक होने के साथ वह भूमि काे उर्वरा बनाने से लेकर उसमें अच्छी फसल उगाने की तकनीक भी जानते हैं। यह खूबी उनके खुद के खेतों में दिखाई भी देती है।
अपने खेतों में वह गोभी, मटर, लहसुन, लौकी, भिंडी, टमाटर के साथ अन्य कई पारंपरिक फसलों का उत्पादन कर रहे हैं। उनके लिए यह सौदा फायदे का रहा है। वह चाहते हैं कि क्षेत्र का हर व्यक्ति खेतीबाड़ी और बागवानी से जुड़े। पिछले दो सालों से खेती और बागवानी में जुटे डॉ. पंत का कहना है कि पिछले कई सालों से वह लोगों को खेती के लिए प्रेरित करते आ रहे हैं। उनकी तरह पहाड़ के अन्य लोग भी खेती व बागवानी कर सकते हैं, लेकिन जब लोग प्रेरित नहीं हुए तो उन्होंने सैनिक समाज पार्टी से अपना नामांकन करा लिया।