देहरादून। नवरात्र शक्ति आराधना का पर्व है। आदि काल से मान्यता है कि महिला शक्ति जब-जब खड़ी हुई तो सृष्टि को नया स्वरूप मिला है। वह आपदा के दर्द को भुलाकर अपने कर्तव्यों में जुटी और अपनों के चेहरों पर मुस्कान बिखेरती है तो वहीं आसपास के परिवेश को भी संवारती है। कहीं शिक्षा के माध्यम से तो कहीं उन्हें अपना हुनर सिखाकर जीवकोपार्जन के लायक बना रही हैंं। उसने पुरुष प्रभुत्व के क्षेत्रों में भी कदम बढ़ाए। हिमालय पर सैर करने के साथ अन्य को भी करवाने लगी। चिकित्सा क्षेत्र में नए आयाम रच दिए। लोगों को न्याय दिलाने में भी पूरी शक्ति लगा दी।
केदारघाटी के तनकिला गांव निवासी देवेश्वरी ने 16-17 जून 2013 की आपदा में अपने पति जय दर्शन सिंह और देवर मनमोहन को खो दिया था। तब बुजुर्ग सास-ससुर की जिम्मेदारी उनके ऊपर आ गई। इसके बाद देवेश्वरी ने स्वयं दुख से उभरकर कपड़ा सिलाई का काम सीखा और कुछ वर्ष बाद गुप्तकाशी में दुकान खोली। जहां उन्होंने कई महिलाओं को कपड़े सिलना सिखाया। आज वह स्वरोजगार के सहारे बुजुर्ग सास-ससुर की देखरेख करने के साथ स्वयं भी आत्मनिर्भर होकर अन्य को भी प्रेरणा दे रही हैं। देवेश्वरी कहती हैं कि आपदा के जख्म तो अमिट हैं, लेकिन परिवार की जिम्मेदारी से मुख नहीं मोड़ सकतीं।
कोटद्वार सनेह पट्टी के लालपानी निवासी लक्ष्मी नेगी ग्रामीण अंचल की महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों से जोड़कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में जुटी हैं। वह वर्ष 2014 से अब तक रिसोर्स पर्सन के रूप में 565 समूहों का गठन कर जरूरतमंद 4500 महिलाओं को इससे जोड़ चुकी हैं। इन महिलाओं में कौशल वर्धन के साथ उन्हें वित्तीय साक्षरता के तहत बैंकों से भी जोड़ा गया है। वह वर्तमान में पदमपुर सुखरो की उड़ान स्वायत्त सहकारिता समिति की अध्यक्ष भी हैं। जिसके माध्यम से महिलाएं फूड प्रोसेसिंग, जूट बैग निर्माण, हर्बल धूप और मसाला प्रोसेसिंग व डेयरी उत्पादन का कार्य कर आजीविका कमा रही हैं।
देहरादून के सुद्धोवाला निवासी मंजू नेगी पिछले 33 साल से महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने और समाजसेवा के क्षेत्र में काम रही हैं। वर्ष 1990 में कला केंद्र शुरू कर महिलाओं को सिलाई, बुनाई, कढ़ाई, बैग, पर्स आदि बनाने और ब्यूटीशियन का प्रशिक्षण देकर स्वरोजगार से जोड़ने की शुरुआत की थी। अब तक केंद्र से प्रशिक्षित 1,300 महिलाएं और युवतियां आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा चुकी हैं। वह आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों की 25 युवतियों के विवाह करवा चुकी हैं और गरीब बच्चों की स्कूल की फीस में भी सहयोग करती आ रही है। मंजू मौजूदा समय में भाजपा की प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य हैं।
नई टिहरी के सुपाणा गांव की रंजना रावत महिला उत्थान के लिए काम कर रही हैं। दो साल में ही उन्होंने करीब 60 समूह बनाकर 200 से अधिक महिलाओं को जोड़ा और उन्हें आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित कर रही हैं। रंजना ने कीर्तिनगर क्षेत्र के अलग-अलग गांव में समूह बनाए हैं। देहरादून में इंटर तक पढ़ी रंजना परिवार की जिम्मेदारी संभालने के साथ ही वह खुशहाल स्वयं सहायता समूह के माध्यम से फूड प्रोसेसिंग का काम कर रही हैं। क्षेत्र के धारकोट गांव की महिलाएं समूह बनाकर डंडोलियन, पैंय्याकोटी में रोजमेरी, केमोमाइल और मंगसू में गाय के गोबर के दिए बना रही हैं। रंजना की तीनों बेटियां और पति भी उनकी मदद करते हैं।
नंदानगर में वादुक गांव की 48 साल की रुकमा देवी 15 साल से जड़ी-बूटी की खेती कर स्वयं के साथ ही अन्य महिलाओं की आजीविका को भी संवार रही हैं। रुकमा जड़ी-बूटी से प्रतिवर्ष 80 हजार से एक लाख रुपये कमा लेती हैं। जड़ी-बूटी के कृषिकरण से रुकमा ने अपनी दो बेटियों की शादी कर दी है। 15 साल पहले रुकमा के पति ने छोड़ दिया था। इसके बाद वह अपने मायके वादुक गांव में रहने लगी। रुकमा ने उद्यान विभाग के सहयोग से जड़ी-बूटी का कृषिकरण शुरू किया। आज रुकमा ने गांव की तीन अन्य महिलाओं को भी जड़ी बूटी कृषिकरण को रोजगार से जाेड़ा है।
इंजीनियर की नौकरी छोड़ देवेश्वरी बिष्ट ने ट्रेकिंग की दुनिया में कदम रखा तो पीछे मुड़कर नहीं देखा। ट्रेकिंग के प्रति उनका जुनून ही था कि वह आज कई पर्वतों के शिखर नाप चुकी हैं। वर्ष 2015 से लेकर अब तक देवेश्वरी सैकड़ों लोगों को हिमालय की सैर करवा चुकी है। जिसमें पंच केदार, पंच बदरी, फूलों की घाटी, हेमकुंड, स्वर्गारोहणी सहित दर्जनों ट्रैक शामिल हैं। अपने हर ट्रैक के दौरान चमोली की रहने वाली देवेश्वरी स्थानीय लोगों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार दिलाती हैं। देवेश्वरी हिमालय की वादियों से एक से एक बेहतरीन फोटो को अपने कैमरे में कैद कर देश दुनिया से रूबरू करवाती हैं।