देहरादून। जिंदगी सबको मिलती है। जुनून किसी-किसी में होता है, जो बाल्यावस्था में ही नजर आने लगता है। जुनून के इस मार्ग पर चलने के लिए चुनौती और जटिल हो जाती है। यदि इस जटिलता का विष पीना सीख गए तो आगे बढ़ते जाएंगे। एक कार्यक्रम के सिलसिले में देहरादून पहुंचे सूफी गायक पद्मश्री कैलाश खेर ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि संगीत में कामयाब होने से पहले घर व बाहर कोई इज्जत नहीं होती।
यहां कम लोग कामयाब होते हैं। मैंने ऋषिकेश में कर्मकांड शुरू किया कि कहीं पुजारी की नौकरी लग जाएगी। जब गाया तो अलग गाया। गाने हिट हुए तो टैग आने लगे कि यह सूफी गाते हैं, जो बाद में मुझे समझ आया। कुल मिलाकर जनता परमात्मा का अंश है। वहीं, उन्होंने फिल्म आदिपुरुष के डायलाग की प्रतिक्रिया के सवाल पर कहा कि मैं इस पर कुछ नहीं बोलूंगा, लेकिन यह बताना चाहूंगा कि बात कहने का सलीका चाहिए।
आप दुनिया में कितने भी बड़े हों, खुद से बड़ों से कैसे मिलते हैं, ये बड़ी बात है। युवा पीढ़ी शास्त्रीय नृत्य को बढ़ावा दे कैलाश खेर के साथ कार्यक्रम के सिलसिले में देहरादून पहुंची मूल रूप से हरिद्वार निवासी अभिनेत्री श्रिया सरन ने शास्त्रीय नृत्य पर जोर देते हुए कहा कि युवा पीढ़ी को भी इसको बढ़ावा देना चाहिए।
कहा कि लोग एक बार फिर थिएटर की ओर जा रहे हैं, यह अच्छा संकेत है। रायबरेली की मीनाक्षी दीक्षित ने कहा कि अधिकांश लोग अब भी बच्चों को डाक्टर व इंजीनियर बनाने तक सीमित हैं। मैंने कुछ अलग करने के लिए लड़ाई लड़ी। भरतनाट्यम व कथक का प्रशिक्षण लिया। नच बलिए शो से साउथ की फिल्में मिलनी शुरू हुईं।