
नैनीताल शहर का इतिहास जितना समृद्ध है, उतना ही रोचक भी। आमतौर पर 18 नवंबर 1841 को नैनीताल की खोज का श्रेय ब्रिटिश अधिकारी पीटर बैरन को दिया जाता है, लेकिन ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि यह पहाड़ी शहर उनसे सैकड़ों वर्ष पहले से स्थानीय लोगों को ज्ञात था। प्राचीन ग्रंथों में नैनीताल और इसके आसपास के भौगोलिक स्वरूप का विस्तृत वर्णन मिलता है, जिससे स्पष्ट है कि इस क्षेत्र का भ्रमण और अध्ययन प्राचीन काल में ही किया जा चुका था। स्वयं बैरन ने भी अपने लेखों में स्वीकार किया कि वे यहां आने वाले पहले व्यक्ति नहीं थे और स्थानीय लोग पहले से ही इस स्थान की जानकारी रखते थे।
आठवीं शताब्दी में लिखित स्कंदपुराण के मानसखंड में कुमाऊं क्षेत्र का अत्यंत विस्तृत और सटीक विवरण मिलता है। इसमें पर्वतों, नदियों, घाटियों और सरोवरों का जो वर्णन दिया गया है वह आज की भौगोलिक संरचना से पूरी तरह मेल खाता है। मानसखंड में इस क्षेत्र के सात सरोवरों—त्रिषि (नैनीताल), नवकोण (नौकुचियाताल), दमन्ती (दमयंतीताल), सीतासरोवर (सीताताल), भीमहृदः (भीमताल), नलहृदः (नलताल) और रामहृदः (रामताल)—का सटीक उल्लेख है। ‘छखाता’ नाम भी मानसखंड के षष्ठी खात शब्द से ही विकसित माना जाता है।
मानसखंड में घने जंगलों के बीच एक सरोवर के निकट महेंद्र परमेश्वरी देवी के मंदिर का उल्लेख मिलता है, जो आज की नैनी झील और नयना देवी मंदिर के अनुरूप है। यह तथ्य भी बैरन के लेखों से मेल खाता है, जहाँ उन्होंने स्थानीय लोगों, यहां की परंपराओं और पहले से चले आ रहे मेले का विवरण दिया है। पहली बार नैनीताल पहुंचने पर बैरन ने बाजार के केंद्र में प्राचीन शैली का एक बड़ा झूला देखा था, जिसकी लोहे की विशाल जंजीरें कुमाऊं के पुराने मंदिरों में प्रयुक्त शैली जैसी थीं।
1843 में अपनी तीसरी यात्रा के दौरान बैरन ने यहां एक विशाल टिड्डी झुंड का उल्लेख किया, जिसने झील और जंगलों को ढक दिया था। स्थानीय लोगों ने उन्हें बताया कि लगभग 15–20 वर्ष पूर्व भी ऐसी ही घटना हुई थी। इससे यह और स्पष्ट हो जाता है कि लंबे समय से लोग इस क्षेत्र में आते-जाते रहे थे। बैरन ने अपने लेखों में यह भी लिखा कि तत्कालीन आयुक्त जी. डब्ल्यू. ट्रेल ने भी कभी इस स्थान का वर्णन किया था, हालांकि उनके यहां आने का प्रमाण उपलब्ध नहीं है।
इतिहासकारों का मत है कि नैनीताल का वास्तविक श्रेय बैरन को इसे विश्व की नजरों तक पहुँचाने के लिए दिया जाना चाहिए, न कि इसकी खोज करने के लिए। बैरन ने अपनी यात्राओं, विवरणों और लेखन के माध्यम से नैनीताल को आधुनिक काल में प्रमुख रूप से दुनिया के सामने रखा और इसे पहाड़ी पर्यटन के नए अध्याय के रूप में स्थापित किया।




