
देहरादून। उत्तराखंड के जिला उपभोक्ता आयोग ने शराब की ओवररेटिंग के मामले में एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया है, जो न केवल संबंधित ठेका मालिक के लिए सबक बना, बल्कि समूचे राज्य में उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक मिसाल के तौर पर देखा जा रहा है। आयोग ने शराब के पव्वे पर ₹30 की अवैध वसूली के मामले में ठेका मालिक को न केवल पैसा लौटाने, बल्कि ₹7,000 से अधिक की क्षतिपूर्ति और हर्जाना अदा करने का आदेश दिया है।
पूरा मामला: महज़ ₹30 की ठगी, लेकिन बड़ी कानूनी लड़ाई
यह मामला वर्ष 2021 का है, जब मियांवाला निवासी अजय कौशिक ने रिस्पना पुल के पास शास्त्रीनगर स्थित एक अंग्रेजी शराब की दुकान से ₹150 एमआरपी वाला शराब का पव्वा खरीदा। जब उन्होंने अपना एटीएम कार्ड भुगतान के लिए दिया, तो सेल्समैन ने बिना पूछे ₹180 काट लिए — यानी ₹30 की अवैध वसूली। जब अजय कौशिक ने इसका विरोध किया, तो उन्हें न सिर्फ अपमानजनक भाषा सुननी पड़ी, बल्कि कथित तौर पर सेल्समैन मारपीट पर भी उतर आया। इस दुर्व्यवहार और आर्थिक शोषण से आहत होकर उन्होंने सबसे पहले जिला आबकारी अधिकारी से शिकायत की। लेकिन कोई प्रभावी कार्रवाई न होने के कारण अंततः उन्होंने जिला उपभोक्ता आयोग की शरण ली।
कानूनी प्रक्रिया और आयोग का रुख
अजय कौशिक की ओर से दायर की गई याचिका में उन्होंने स्पष्ट रूप से तर्क दिया कि ठेका संचालक ने ना केवल कानून का उल्लंघन किया बल्कि ग्राहक के साथ असम्मानजनक और आक्रामक व्यवहार किया, जिससे उन्हें मानसिक पीड़ा और सामाजिक अपमान का सामना करना पड़ा। उन्होंने इसे एक आम उपभोक्ता के अधिकारों का हनन और व्यापार में अनुचित व्यवहार करार दिया।
इस मामले में आबकारी विभाग को भी पक्षकार बनाया गया। विभाग की ओर से दाखिल जवाब ने मामले को नया मोड़ दे दिया। जिला आबकारी अधिकारी ने स्पष्ट कहा कि ₹150 की एमआरपी वाले शराब के पव्वे के बदले ₹180 वसूलना पूरी तरह अवैध और विभागीय नियमों के विरुद्ध है। इसी जवाब को आयोग ने पुख्ता साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया।
फैसला: अवैध वसूली पर ज़ीरो टॉलरेंस
जिला उपभोक्ता आयोग ने दिए गए साक्ष्यों, विभागीय रुख और मामले की गंभीरता को देखते हुए ठेका मालिक बलवंत सिंह बोरा को दोषी ठहराया और निम्नलिखित आदेश पारित किए:
- ₹30 अतिरिक्त वसूली की वापसी
- ₹5,000 मानसिक पीड़ा और उत्पीड़न के लिए हर्जाना
- ₹2,000 मुकदमा खर्च के रूप में अतिरिक्त भुगतान
कुल योग: ₹7,030 | भुगतान समयसीमा: 45 दिन
साथ ही आयोग ने आबकारी विभाग को निर्देशित किया कि वह संबंधित ठेका संचालक के विरुद्ध उचित कार्रवाई करें, ताकि ऐसी घटनाएं दोबारा न हो।
व्यापक असर: एक उपभोक्ता की लड़ाई, पूरे राज्य के लिए चेतावनी
यह फैसला महज ₹30 की बात नहीं है, बल्कि यह उत्तराखंड में उपभोक्ता अधिकारों की लड़ाई की दिशा में एक निर्णायक मोड़ है। राज्य में शराब की दुकानों पर एमआरपी से अधिक वसूली आम बात बन चुकी है। आबकारी नीति 2023-24 में यह स्पष्ट कहा गया है कि एमआरपी से अधिक कीमत वसूलने पर लाइसेंस रद्द किया जा सकता है। इसके बावजूद शराब विक्रेताओं की मनमानी जारी है।
इस संदर्भ में आयोग का यह आदेश राज्यभर के शराब ठेकेदारों के लिए एक कड़ा संदेश है — कि अब ओवररेटिंग, गाली-गलौज और मनमानी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। यह मामला एक साधारण उपभोक्ता की संवेदनशीलता, जागरूकता और साहस की कहानी है। यदि हर उपभोक्ता इसी तरह अपने अधिकारों के लिए खड़ा हो, तो न केवल शराब बिक्री में सुधार होगा, बल्कि भारत में उपभोक्ता अधिकार संरक्षण कानून और भी ज्यादा मजबूत बनकर उभरेगा।