
आगरा। गृह क्लेश में अब पति भी जान दे रहे हैं। ऐसे मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। मानसिक रोग विशेषज्ञ मानते हैं कि शादी व्यावसायिक हो गई है। इसमें रिश्तों से बड़ी मांगें हो गई है। लंबे समय तक प्रताड़ना और मांग पूरी नहीं कर पाने से युवक अवसाद में आकर आत्मघाती कदम उठा लेते हैं। मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय के निदेशक प्रो. दिनेश राठौर ने बताया कि ओपीडी में 280-300 मरीज रोज आ रहे हैं। इनमें 10-12 मरीज ऐसे होते हैं, जो पत्नी या अपने ससुराल पक्ष की मांगें, हस्तक्षेप या फिर धमकियों के चलते तनाव और अवसाद में आ गए। ये मल्टीनेशनल या फिर नामी कंपनियों में जॉब करते हैं। खास बात कि शादी को दो साल से कम समय वाले युवाओं की संख्या अधिक है।
पूछताछ में मरीज से पता चला कि पत्नी रिश्तों के बजाए रुपयों को तवज्जो देती है। इसमें साला, सास, ससुर का अधिक हस्तक्षेप रहता है। प्रॉपर्टी या फिर अन्य मांगें पूरी नहीं होने पर पति और उसके परिजनों का जीवन बरबाद करने की धमकी दी जाती है। ऐसे में कई बार मरीज अपना दर्द साझा नहीं कर पाने से आत्मघाती कदम उठा लेते हैं। समय रहते परिजन या फिर मित्र उसकी मनोदशा को समझते हुए बात करें, उन्हें समझाएं या काउंसिलिंग कराएं तो मरीज ऐसे कदम उठाने से बच जाते हैं।
एसएन मेडिकल कॉलेज के मानसिक रोग विभागाध्यक्ष डॉ. विशाल सिन्हा का कहना है कि शादी को लोगों ने व्यावसायिक बना लिया है। मतलब, डाक्टर है तो डॉक्टर पत्नी, इंजीनियर तो इसी क्षेत्र की पत्नी। बेटे का अच्छा पैकेज है तो बहू भी नौकरीपेशा और अच्छे पैकेज प्राप्त करने वाली है। दोनों आर्थिक रूप से मजबूत होते हैं। ऐसी शादियों में पति-पत्नी को बराबर करने के बजाए एकदूसरे के आमने-सामने खड़ा कर दिया जाता है। कानून भी महिलाओं के पक्षधर होते हैं, इनके दुरुपयोग का भय दिखाकर कई बार ससुरालीजन उत्पीड़न करने लगते हैं। ऐसे में कई बार युवक आत्मघाती कदम उठा लेते हैं।
ये करें
– बेटियों को सशक्त बनाए, रिश्तों का सम्मान करना सिखाएं।
– शादी को व्यावसायिक बनाने की बजाय सामाजिक जीवन पर जोर दें।
– पारिवारिक कलह में परिजनों की भूमिका सकारात्मक होनी चाहिए।
– अवसाद-तनाव के लक्षण मिलने पर परिजन पडि़त की काउंसिलिंग कराएं।