देहरादून। परेड ग्राउंड में विश्व आयुर्वेद कांग्रेस और आरोग्य एक्सपो में पंचवाद्यम की गूंज ने मंत्रमुग्ध किया। केरल के वाद्यकों ने चिकित्सा के लिए संगीत थेरेपी को कारगर बताया। एक्सपो में करीब 60 देशों के विशेषज्ञ प्रतिभाग कर कर रहे हैं। पहले दिन आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति पर आधारित विभिन्न प्रदर्शनी देखने को मिलीं। केरल के तालवाद्यक समूह ने सांस्कृतिक पंचवाद्यम के माध्यम से संगीत थेरेपी का महत्व समझाया।
तालवाद्यक समूह के सदस्य रंजित, अभिमन्यु, विश्वजीत, गोगुल और शोभित ने थिमिला, मद्दलम, इलाथलम, इडक्का और कोम्बू नामक वाद्ययंत्रों को बजाकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। रंजित ने बताया कि पंचवाद्यम केरल का करीब 200 वर्ष पुराना सांस्कृतिक कार्यक्रम है। इसमें पांच तालवाद्यक शामिल होते हैं, जो वाद्य यंत्रों को बजाते हैं। उन्होंने बताया कि केरल की यह काफी लोकप्रिय संस्कृति है, जो आयुर्वेद चिकित्सा से जुड़ी है। इसकी ध्वनि का श्रवण करने से मन को शांति मिलती है। इसके अलावा इसकी मधुर ध्वनि रक्त संचार की गति को भी तेज करती है।
लगातार इसकी ध्वनि का श्रवण करने वाले लोगों में बीमार होने की संभावनाएं काफी कम हो जाती हैं। तालवाद्यक अभिमन्यु ने बताया कि धार्मिक आयोजनों में भी पंचवाद्यम का प्रदर्शन किया जाता है। इसे काफी शुभ माना जाता है। बताया जाता है कि यह मंदिर उत्सवों के लिए भी लोगों में काफी लोकप्रिय है। बीज बचाव आंदोलन के प्रणेता विजय जड़धारी पहाड़ के कई पारंपरिक बीजों को लेकर एक्सपो में पहुंचे हैं। वे लोगों को वर्षों पुरानी संस्कृति से रूबरू करवा रहे हैं। विजय जड़धारी ने बताया कि मंडुआ, झिंगोरा, पौड़ी, चीड़ा, लाल चावल, लोबिया, कौड़ी, कंकोड़ा और गहथ समेत कई बीजों की सैकड़ों विविधताएं लेकर पहुंचे हैं।
उन्होंने बताया कि इन बीजों के सैकड़ों प्रकार हैं। इनका सेवन करने से मनुष्य पूरी तरह रोग मुक्त रहता है। इस दौरान वे लोगों से पहाड़ के बीजों और संस्कृति को संरक्षित रखने की अपील कर रहे हैं। विजय जड़धारी ने बताया कि चुल्लू का तेल हड्डी रोगियों के लिए काफी मददगार है। इसे चुल्लू के बीजों से तैयार किया जाता है। इससे हड्डियों के दर्द और त्वचा को सुंदर रखने में भी काफी मदद मिलती है।