देहरादून। देशभर में बाघों के संरक्षण के तहत किए जा रहे प्रयासों के बीच उत्तराखंड में लगातार बाघों की मौत हो रही है। यहां बीते पांच महीने में 12 बाघ-बाघिनों की मौत हो चुकी है। यह आंकड़ा वन्यजीव प्रेमियों के लिए किसी आघात से कम नहीं है। सबसे अधिक मौतें कुमाऊं के सेंट्रल तराई क्षेत्र में हुई हैं। मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक डॉ. समीर सिन्हा ने मुख्य वन संरक्षक कुमाऊं को विस्तृत जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस वर्ष अप्रैल में देश में बाघ गणना-2022 के आंकड़े जारी किए थे। उसमें पिछले चार वर्षों से बाघों की संख्या में 6.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाई गई है। देशभर में बाघों की संख्या करीब 3167 बताई गई है। वर्ष 2018 की गणना के अनुसार उत्तराखंड में बाघों की संख्या 442 है। अभी राज्यवार आंकड़े जारी नहीं किए गए हैं, लेकिन उत्तराखंड वन विभाग के अधिकारी इन्हीं आंकड़ों के आधार पर प्रदेश में बाघों की संख्या बढ़ने की संभावना जताकर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। इसके उलट जिस तेजी से बाघों की मौत हो रही है, उससे तस्वीर का रंग धुंधला भी हो सकता है।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, देशभर में इस साल बीते पांच महीने में कुल 76 बाघों की मौत हुई है। इनमें 12 बाघ केवल उत्तराखंड में मारे गए। उत्तराखंड में इस साल बाघ की पहली मौत का मामला जनवरी में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में सामने आया था। उसके बाद फरवरी मेें तीन बाघ नैनीताल और रामनगर में मृत पाए गए। फिर मार्च में दो बाघ चकराता रेंज हल्द्वानी और रामनगर डिविजन में मारे गए।
अप्रैल में कॉर्बेट की ढेला रेंज में एक बाघ मृत पाया गया। मई में दो बाघ कालागढ़ डिविजन और कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में मारे गए, जबकि तीन बाघों की मौत का आंकड़ा अभी तक वेबसाइट पर अपडेट नहीं किया गया है। बाघों की मौत के कारण अलग-अलग हैं। वर्ष 2022 में 12 महीने में नौ बाघों की मौत दर्ज की गई थी।
वर्ष 2001 से मई 2023 तक उत्तराखंड में मृत बाघों के आंकड़े
शिकार हुए- 06
दुर्घटनाओं में – 16
जंगल की आग में – 02
मानव जीवन के लिए खतरा बने – 04
आपसी संघर्ष में – 37
स्वाभाविक मौतें – 85
सड़क दुर्घटना में – 01
सांप के काटने पर – 01
जाल में फंसकर- 01
मृत्यु का कारण पता नहीं- 28
कुल मारे गए बाघ – 181
प्रदेश में इस साल अभी तक 12 बाघों की मौत हुई है। सबसे ज्यादा मौतें सेंट्रल तराई क्षेत्र में हुई हैं। ज्यादातर मौतें आपसी संघर्ष या किसी दुर्घटना में हुई हैं। किसी भी मामले में बाघ का कोई अंग मिसिंग नहीं है। विभाग मौत के इन आंकड़ों को लेकर सतर्क है। मुख्य वन संरक्षक कुमाऊं को इन मामलों की जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा गया है।
– डॉ. समीर सिन्हा, मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक, वन विभाग