उत्तरकाशी। ग्रीष्मकाल में चारधाम यात्रा सीजन के दौरान दुर्गमता के चलते अगर आप मां यमुना के दर्शनों को यमुनोत्री धाम नहीं पहुंच पाए तो शीतकाल में सुगमता से खरसाली (खुशीमठ) चले आइए। मां यमुना शीतकाल के दौरान यहीं अपने भक्तों को दर्शन देती हैं।
खरसाली स्थित यमुना मंदिर में अगले वर्ष अक्षय तृतीय तक मां यमुना की भोगमूर्ति विराजमान रहेगी। इस अवधि में यहां चार तीर्थ पुरोहित तैनात हैं, जो विधि-विधान से यमुना पंचांग पाठ, दैनिक पूजा और आरती संपन्न करते हैं। यमुना मंदिर में मां यमुना की आरती का समय शाम साढ़े छह बजे निर्धारित है।
उत्तरकाशी जिले में समुद्रतल से 2500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित खरसाली गांव यमुना नदी के किनारे सुरम्य वादियों में बसा हुआ है। खरसाली से बंदरपूंछ, सप्तऋषि, कालिंदी, माला व भीम थाच जैसी चोटियों के दर्शन होते हैं। शीतकाल के दौरान आसपास की पहाड़ियां बर्फ की धवल चादर ओढ़े रहती हैं। जनवरी के दौरान खरसाली में भी जमकर बर्फबारी होती है, जिसका आनंद उठाने के लिए पर्यटक और यमुना घाटी के ग्रामीण बड़ी संख्या में यहां पहुंचते हैं।
खरसाली गांव में 300 परिवार निवासरत हैं, जिनमें से अधिकांश शीतकाल के दौरान गांव में ही रहते हैं। यमुनोत्री के तीर्थ पुरोहित भी इसी गांव के निवासी हैं। खरसाली से यमुनोत्री धाम की दूरी छह किमी है, जबकि जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से खरसाली की दूरी 134 किमी। खरसाली गांव सड़क से जुड़ा हुआ है। शीतकालीन प्रवास स्थल होने के कारण खरसाली गांव को यमुना का मायका भी कहा जाता है। इसी से इस गांव की पहचान भी है। यहां यमुना मंदिर भव्य स्वरूप में है।
यमुनोत्री धाम के तीर्थ पुरोहित पुरुषोत्तम उनियाल कहते हैं कि शीतकाल के दौरान खरसाली में मां यमुना के दर्शन का वही माहात्म्य है, जो यमुनोत्री धाम में दर्शनों का। मान्यता है कि खरसाली में मां यमुना और शनिदेव के दर्शन करने से यम यातना से मुक्त मिल जाती है। जो तीर्थ यात्री यमुनोत्री धाम की चढ़ाई नहीं चढ़ पाते हैं, वो शीतकाल में खरसाली पहुंचकर मां यमुना के दर्शन कर सकते हैं।
यहां शनिदेव के मंदिर में दो बड़े पात्र मौजूद हैं। इनमें एक आकार में छोटा और एक बड़ा है। कहा जाता है कि कार्तिक अमावस्या और कार्तिक पूर्णिमा की रात ये पात्र अपने आप पश्चिम से पूरब और पूरब से पश्चिम को दिशा बदल देते हैं। इन पात्रों को रिखोला और पिखोला कहा जाता है, जो पीढ़ियों से जंजीर से बंधे हुए हैं।
यात्रा के दौरान आप खरसाली गांव में ही स्थित पौराणिक शनि मंदिर के दर्शन भी कर सकते हैं। शीतकाल के लिए शनि मंदिर के कपाट 17 दिसंबर को बंद होते हैं और वैशाखी पर्व पर खोले जाते हैं। पुरातत्व विभाग के अनुसार गांव के बीच में स्थित शनिदेव का यह मंदिर 800 वर्ष से अधिक पुराना है।
मान्यता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। तब पांडव खरसाली के निकट लाखामंडल तक भी आए थे। यह चार मंजिला मंदिर पत्थर व लकड़ी से निर्मित है कई भूकंप व आपदा भी झेल चुका है। शनि देवता मंदिर परिसर में धर्या चौंरी देवस्थल है। स्कंद पुराण के केदारखंड में उल्लेख है कि इसी स्थान पर बेखल के पेड़ के नीचे शनिदेव प्रकट हुए थे।