रुद्रप्रयाग। बाबा केदार के धाम केदारनाथ मंदिर के कपाट भैया दूज के अवसर पर मंत्रोच्चारण के बीच शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। इस दौरान मंदिर परिसर में भारी संख्या में भक्तगण मौजूद रहे। बाबा केदार के कपाट बंद होने से पहले इस बार भक्तों को एक खास मौका मिला, जिसे देखकर भोलेनाथ भक्त खुशी से झूम उठे।
29 अक्तूबर को डोली अपने शीतकालीन पूजा गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में विराजमान होगी। भैयादूज के पावन पर्व पर गुरुवार को परंपरानुसार भगवान आशुतोष के ग्याहरवें ज्योतिर्लिंग श्रीकेदारनाथ धाम के कपाट सुबह 8.30 बजे विधि-विधान के साथ शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए हैं। इस मौके पर सैकड़ों भक्तों ने बाबा के दर्शन कर पुण्य अर्जित किया।
सुबह चार बजे से ही मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना शुरू हो गई थी। मुख्य पुजारी टी गंगाधर लिंग ने आराध्य का श्रृंगार कर आरती उतारी। इस मौके पर स्वयंभू लिंग को समाधि रूप देकर पुष्प व भस्म से ढका गया। भगवान की भोग मूर्तियों को चल विग्रह उत्सव डोली में विराजमान कर भक्तों के दर्शनों के लिए कुछ देर मंदिर परिसर में रखा गया।
जिसके बाद विधि-विधान व धार्मिक परंपराओं के तहत सुबह 08.30 बजे केदारनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए शुभ लग्न पर बंद कर दिए गए। अन्य धार्मिक औपचारिकताओं को पूरा करते हुए प्रशासन व बीकेटीसी के अधिकारियों की मौजूदगी में मंदिर के कपाट बंद कर चाभी एसडीएम ऊखीमठ को सौंप दी गई।
सुबह तीन बजे से दर्शन शुरू हो गए थे। इस दौरान श्रद्धालु स्वर्ण मंडित गर्भगृह देखकर हुए प्रफुल्लित हो गए। केदारनाथ धाम के गर्भगृह को स्वर्णमंडित कर दिया गया है। 550 सोने की परतों से गर्भगृह की दीवारें, जलेरी व छत को नया रूप दिया गया है। एएसआई के दो अधिकारियों की देखरेख में बुधवार को आखिरी चरण का कार्य पूरा कर दिया गया। महाराष्ट्र के एक दान दाता के सहयोग से बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति ने यह कार्य किया है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान व केंद्रीय भवन अनुसंधान रुड़की और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के छह सदस्यीय दल ने धाम पहुंचकर मंदिर के गर्भगृह का निरीक्षण किया था। विशेषज्ञों की रिपोर्ट के बाद केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह में सोने की परत लगाने का काम शुरू किया गया।
दशकों पूर्व केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह को खाडू घास से सजाया जाता था। घास को उगाने के लिए केदारघाटी में कुछ खेत चिह्नित किए गए थे। इसके बाद घास की जगह गर्भगृह की दीवारों व फर्श पर कटवा पत्थर लगाए गए। अस्सी के दशक में गर्भगृह की दीवारें टीन से सजाई गईं लेकिन कुछ ही वर्षों बाद इन्हें हटा दिया गया। 2017 में दानीदाता के सहयोग से मंदिर के गर्भगृह में चांदी की परतें लगाई थी।